सियासतें कर रही हैं चर्चाएँ
एसी में बैठकर...
हालात-ए-मजदूर
मजदूर दिवस पर!
एसी में बैठकर...
हालात-ए-मजदूर
मजदूर दिवस पर!
एसी खींचकर
ले जा रहे थे दो मजदूर...
बुझे हुए चेहरे,
थे पसीने से तरबतर!
ले जा रहे थे दो मजदूर...
बुझे हुए चेहरे,
थे पसीने से तरबतर!
बनाते हैं शीशमहल
रहते हैं झुग्गी-झोपड़ियों में...
बस तकदीर की रेखायें नही,
इन हाथों में है हुनर!
रहते हैं झुग्गी-झोपड़ियों में...
बस तकदीर की रेखायें नही,
इन हाथों में है हुनर!
दो जून की रोटी
और तन ढकने के कपड़े...
कहते है मजदूर
उम्मीद न और कर!
और तन ढकने के कपड़े...
कहते है मजदूर
उम्मीद न और कर!
ये जिंदगियां ऐसी ही हैं 'शब्दभेदी'
करते हैं अधिकतर, पाते हैं कमतर !
करते हैं अधिकतर, पाते हैं कमतर !
बेहतरीन.. शब्दभेदी जी !
ReplyDeletenice lines bhai
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