Sunday, May 1, 2016

हालात-ए-मजदूर

सियासतें कर रही हैं चर्चाएँ
एसी में बैठकर...
हालात-ए-मजदूर
मजदूर दिवस पर!

एसी खींचकर
ले जा रहे थे दो मजदूर...
बुझे हुए चेहरे,
थे पसीने से तरबतर!

बनाते हैं शीशमहल
रहते हैं झुग्गी-झोपड़ियों में...
बस तकदीर की रेखायें नही,
इन हाथों में है हुनर!

दो जून की रोटी
और तन ढकने के कपड़े...
कहते है मजदूर
उम्मीद न और कर!

ये जिंदगियां ऐसी ही हैं 'शब्दभेदी'
करते हैं अधिकतर, पाते हैं कमतर !

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