Sunday, April 9, 2017

सफलता

गांव के छोटे बच्चों के साथ मैं ट्यूबवेल पर बैठकर मजे ले रहा था। कुछ ही दूर पर पड़ोस के पण्डित जी से बाऊ जी बतिया रहे थे.. कुछ देर की बातचीत से मुझे समझ में आया कि मेरे बारे में ही कुछ बात हो रही है।

दूर से समझने की नाकाम कोशिशें खतम हो जाने के बाद मैं पण्डित जी के जाने का इंतजार करने लगा। पण्डित जी के जाते ही मैं दौड़कर पहुचा..
'बाऊजी..! क्या कह रहे थे महराज?'

गांव के सभी मामलों के सबसे अच्छे सलाहकार और मुझे सबसे कम सलाह देने वाले बाऊजी का जवाब था..
'कुछ नहीं...!

मैंने बची-खुची हिम्मत जुटाई.. और फिर पूछा..
'पण्डित जी मेरे बारे में कुछ कह रहे थे क्या?'

उधर चुप्पी इधर डर...
'बेटा! सफलताओं के सैकड़ों बाप होते हैं, असफलताओं में अपना खुद का बाप अपना नहीं होता!'

गमछे को कंधे पर रखकर बाऊजी बोले औऱ बाजार की ओर चल पड़े..!
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मैं सर खुजाता बैठा रहा.. और अभी तक निश्चिंत नहीं हो पाया हूँ कि क्या मैं जो समझ रहा हूँ बाऊजी की बात का वही मतलब था... 😣

Wednesday, April 5, 2017

मझधार

तेरे शहर में ऐसे फिर मेरा आना हो रहा है,
मझधार में फिर कश्ती का जाना हो रहा है!

मुसलसल लौट रही हैं जेहन में वो सारी यादें
जिन्हें बीते भी अब इक जमाना हो रहा है!

कोई उम्मीद नहीं मिलन की रात भी होगी,
दिल की दुल्हन का मगर सजना-सजाना हो रहा है!

नजाहिर है कुछ फिर भी, पड़ोसी पूछ बैठा,
खुशी किस बात की है क्या छिपाना हो रहा है!

बता तो दें उसको मगर कैसे बताएं कि
किसी सपने को याद करके मुस्कुराना हो रहा है!

जरूरतें जिसको बना चुकी हैं मुकम्मल आदमी
शब्दभेदी फिर वही आशिक़-दीवाना हो रहा है!

Sunday, April 2, 2017

वक्त-बेवक्त

सूखते जख्म कुरेदना है आदत जमाने की
खैर छोड़िए क्या बताएं रवायत जमाने की!
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वक्त-बेवक्त छेड़ जाता है कोई उसकी बात,
लाख गुजारिश करूं मैं न याद दिलाने की!
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जिरह किसी से नहीं करता अपनी तंगहाली का
भूलने दो ये बातें नहीं है कहने-कहाने की!
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बेहिज दिल भी अपना होकर अपना नहीं है
क्या-क्या न किये जतन इसको बहलाने की!
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शब्दभेदी कोशिशें मुसलसल जारी हैं मगर
मैं दावे नहीं कर सकता सब भूल जाने की!