तेरे शहर में ऐसे फिर मेरा आना हो रहा है,
मझधार में फिर कश्ती का जाना हो रहा है!
मुसलसल लौट रही हैं जेहन में वो सारी यादें
जिन्हें बीते भी अब इक जमाना हो रहा है!
कोई उम्मीद नहीं मिलन की रात भी होगी,
दिल की दुल्हन का मगर सजना-सजाना हो रहा है!
नजाहिर है कुछ फिर भी, पड़ोसी पूछ बैठा,
खुशी किस बात की है क्या छिपाना हो रहा है!
बता तो दें उसको मगर कैसे बताएं कि
किसी सपने को याद करके मुस्कुराना हो रहा है!
जरूरतें जिसको बना चुकी हैं मुकम्मल आदमी
शब्दभेदी फिर वही आशिक़-दीवाना हो रहा है!
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