गांव के छोटे बच्चों के साथ मैं ट्यूबवेल पर बैठकर मजे ले रहा था। कुछ ही दूर पर पड़ोस के पण्डित जी से बाऊ जी बतिया रहे थे.. कुछ देर की बातचीत से मुझे समझ में आया कि मेरे बारे में ही कुछ बात हो रही है।
दूर से समझने की नाकाम कोशिशें खतम हो जाने के बाद मैं पण्डित जी के जाने का इंतजार करने लगा। पण्डित जी के जाते ही मैं दौड़कर पहुचा..
'बाऊजी..! क्या कह रहे थे महराज?'
गांव के सभी मामलों के सबसे अच्छे सलाहकार और मुझे सबसे कम सलाह देने वाले बाऊजी का जवाब था..
'कुछ नहीं...!
मैंने बची-खुची हिम्मत जुटाई.. और फिर पूछा..
'पण्डित जी मेरे बारे में कुछ कह रहे थे क्या?'
उधर चुप्पी इधर डर...
'बेटा! सफलताओं के सैकड़ों बाप होते हैं, असफलताओं में अपना खुद का बाप अपना नहीं होता!'
गमछे को कंधे पर रखकर बाऊजी बोले औऱ बाजार की ओर चल पड़े..!
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मैं सर खुजाता बैठा रहा.. और अभी तक निश्चिंत नहीं हो पाया हूँ कि क्या मैं जो समझ रहा हूँ बाऊजी की बात का वही मतलब था... 😣
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