Sunday, July 16, 2017

बिक गयी है पबलिक

‘बिक गयी है गोरमिन्ट’
यह भी एक जुमला है
एक सार्वजनिक जुमला
.
जैसे कुछ सरकारी जुमले हैं
‘अच्छे दिन आयेंगे’
‘स्वच्छ भारत - स्वस्थ भारत’
‘सबका साथ सबका विकास'
  ' सब पढ़ें - सब पढ़ें'
  'बेटी पढ़ाओ- बेटी बचाओ'
.
और भी कई मुंह बोले सरकारी वादे
और उन पर सार्वजनिक ऐतबार की तरह...
.
भला कौन करना चाहता है
यहां जुमले और हकिकत में फर्क
सभी यहां पेश करते हैं
जुमले के बदले जुमले
अरे वही कई सरकारी जुमलों
के जवाब में एक ब्रम्हास्त्र जुमला
वही एक सार्वजनिक जुमला
कि ‘बिक गयी है गोरमिन्ट’
.
दरअसल ये ‘बिक गयी है गोरमिन्ट’
भी उतना ही फर्जी जुमला है
जितना कि
वे सब सरकारी जुमले
और…
जैसे सभी सरकारी जुमलों की
एक काली जमीनी हक़ीकत होती है
वैसे ‘बिक गयी है गोरमिन्ट’
की भी है एक काली सी हक़ीकत
.
‘बिक गयी है पबलिक’
यह है उस सार्वजनिक जुमले की
जमीनी काली हक़ीकत
दरअसल वो बिक नहीं सकता
जो खरीदार हो!
और गोरमिंट तो खरीदार है
इस जम्हूरियत के बाजार की!
.
गोरमिन्ट खरीदने पर आयी है..
‘और ये बिक गयी है पबलिक!'

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