मुश्किलों में मुंह फेर के चले कुछ दोस्त मेरे,
और जान भी लिए हाजिर हैं कुछ दोस्त मेरे।
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यूँ बाहों में बाहें डालकर फिरते रहे बेफिक्र,
हां बचपन मेरा ज़िंदा किए थे कुछ दोस्त मेरे।
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जब दुनियां बदल रही सब लोग बदल रहे थे
वो रत्ती भर भी न बदले थे कुछ दोस्त मेरे।
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तन्हाईयां खाने लगी जवानी में मुझे जब भी,
अजी महफ़िल भी छोड़ आये कुछ दोस्त मेरे।
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पाते जो किसी गली में भटकता हुआ कभी,
सही रस्ते पे मुझे ले जाते हैं कुछ दोस्त मेरे।
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समझाया कई दफे सम्हला नहीं जो फिर भी
अरे घर तक मुझे पहुंचाते हैं कुछ दोस्त मेरे।
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तकदीर ने डुबोया जब उल्फत की दरिया में,
कस्ती इमदाद की ले के आये कुछ दोस्त मेरे।
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जो चले गए उनका अब जिक्र भी क्या करना,
तसव्वुर कोई अनहद हसीन थे कुछ दोस्त मेरे
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पाना-खोना, पाकर खोना है खेल ज़िन्दगी का
है हक़ीकत पूंजी असल यही हैं कुछ दोस्त मेरे।
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'कैसी चल रही ज़िन्दगी?' कोई जो पूछे तो..
बेसबब, बेइंतहा याद आते हैं कुछ दोस्त मेरे।
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शब्दभेदी ताउम्र कमाओगे फिर भी न पाओगे,
मियां यूं बेहद बेशकीमती से हैं कुछ दोस्त मेरे।
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मित्रता दिवस की अशेष शुभकामनाओं के साथ वर्चुअल और एक्चुअल दोनों ही दुनियां के दोस्तों को समर्पित.. ❤
Sunday, August 6, 2017
कुछ दोस्त मेरे
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