Thursday, March 16, 2017

जिंदगी का सफ़र

जल्द लौटने का वादा था सफ़र की शुरुआत से,
मुसलसल चलता रहा धोखा किया अपने-आप से!

खौफ खाकर इक परिंदा आसमां में उड़ता रहा
आप भी जमीन के हो साहब क्या बताएं आपसे!

उड़ती रही जब तक पतंग, पेचों ने खूब वार किये,
कट गई जो दफ़अतन, सबने लूटा भरे उल्लास से!

'शब्दभेदी' तू रुक गया तो सोचता है रुक जाएगी?
बिन रुके ही दौड़ती है दुनिया अपनी ही रफ्तार से!

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