अरसे से उदास चेहरे पे शह पाना चाहता हूँ,
मैं जैसे मुस्कुराता था वैसे मुस्कुराना चाहता हूँ!
राहों की खाक से परे, मिट्टी में मैं खेलूं,
मौज-औ-शुकूँ का वही जमाना चाहता हूँ!
आजमा के देखा मैंने अपनों - परायों को,
किसी हद तक खुदको आजमाना चाहता हूँ!
रंगमंच का खेल था तालियां भी खूब बजी,
वक्त हो चला है अब परदा गिराना चाहता हूँ!
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शब्दभेदी
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