इलाहाबाद आज भी उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा सिविल सर्विस मॉल है, हर दूकान(कोचिंग) पे सरकारी नौकरियों की सुनिश्चितता बिकती है, वर्षों पहले मित्र रामकिशुन के कमरे पे गया, मसाला कुचकुचाते रामकिसुन मिल गये। एक गिलास में हरा धनिया, लहसुन, मिर्च डालकर उसे बेलन से गिलास में ही कुचकुचा रहे थे। बगल में ही रेडियो पर बज रहा था - राम करे ऐसा हो जाये......मेरी निंदिया तोहे लग जाये.... मैं जागूं तू सो जाय......मैं जागूं......
वहीं एक तरफ दीवाल पर सिंहासन पर बैठे हुए सम्राट अशोक का चित्र टंगा था, देखते ही लगता था कि कोई बंदा यहां पर सिविल सर्विसेस की तैयारी में सम्राट अशोक को आदर्श मान रहा है, जरूर IAS, PCS बनना चाहता है. दूसरी दीवाल पर नियॉन, ऑर्गन, क्रेप्टॉन से सुसज्जित Periodic Table. शायद Chemistry की तैयारी भी चल रही है, एक जगह घी, तेल, चावल, दाल आदि को रखे देखा। उन्हीं के बीच चॉक से लिखा था Welcome 2009. कुछ पुराने पोस्टर या चित्रों के फाडे जाने या हटाये जाने के अवशेष दिख रहे थे, एक जगह विवेकानंद का चित्र था, बगल में अखबार की कोई कटिंग चिपकी थी जिसमें एक शख्स की Black and White फोटो दिखी । पूछने पर पता चला एक बंदा यहां का सिविल सर्विसेस में चुना गया था। इसी कमरे में रहता था। सो, हम लोगों ने उसके सम्मान में अखबार में आये उसके चित्र को कटिंग कर यहां चिपका दिया है, मकान मालिक कमरा देने से पहले ही हिदायत दे देता है, इस कटिंग को हटाना नहीं। दीवाल पर चिपके रहने देना है,
तहरी बनाई जा रही थी,उन्हीं सब के बीच कुछ हंसी-मजाक वाला बतकूचन भी चल रहा था, विषय था कौन....कहां.....क्या........कैसे.... हर बात के पीछे हंसी ठट्ठा जमकर हो रहा था.
एक बोले - अरे रामकिसुन जी, आप तो खाली एक अढैया खा लोगे और लगोगे सोने, थाली भी नहीं सरकाओगे कि कम से कम वही सरका दें, बाद में भले सुबह उठ कर सूखी कटकटा गई जूठी थाली को एक घंटा मांजोगे.
- अरे तो क्या हुआ, मांजते तो हैं न,मेरा तो ये मानना है कि खाना खाओ तो वहीं सो जाओ, थाली सरकाना मतलब एहसान फरामोश हो जाना है, कि, खा लिये और सरका दिये।
मैं रामकिसुन जी की खाना खाने और थाली न सरकाने के पीछे छुपे दर्शन को देख थोडा दंग था,हंसी-मजाक भी दर्शनशास्त्रमय हो उठा,तभी एक और विषय उठा - नमक, दरअसल बगल के कमरे से कोई छात्र नमक लेने आ पहुँचे. मैंने देखा नमक के नाम पर बडी-बडी डली थी डिब्बे में. मैं पूछ बैठा - अरे भई, ये तो पहले पुराने समय में मिलने वाला नमक है, बडे-बडे ढोके वाला,अब भी मिलता है क्या. ये तो आयोडाइज्ड नमक नहीं है।
एक बोले - यहां किसको बच्चा होने जा रहा है जो आयोडीन वाला नमक खाये.
सभी फिर एक बार ठठाकर हंसे.
अरे भई, सस्ताहवा नमक लिये, ढेला फोडे, डाल दिये. एतना सोचने लगे तो कर लिये तैयारी कम्पिटीशन की,
फिर भी, क्या अब भी ये मिलता है, मैंने तो समझा था बंद हो गया होगा.
बंद तो नहीं हुआ लेकिन अब भी बडे-बडे डली या ढेले के रूप में गांव देहात में बिकता है, गांव से आ रहे थे तो मय झोला-झक्कड यह ढेलेदार नमक भी टांग लाये थे।
दूसरे छात्र बोले - अरे बस नमक, और वो ससुराल से खटाई और घी लेते आये वह क्यों नहीं बताते।
पता चला जिस छात्र के बारे में बातें हो रही थीं उसकी शादी हो चुकी है और दो बच्चे भी हैं। पत्नी सुदूर देहात में अपने दो बच्चों के साथ है और ये महाशय यहां कम्पिटीशन की तैयारी कर रहे हैं,पत्नी का चयन शिक्षामित्र के रूप में गांव में हो गया है और कुछ खर्चा पानी घर का वह ही उठाये हुऐ हैं.
तो बात चल रही थी नमक के ढेले पर. कि......नमक का ढेला फोडा, दाल में डाला, दाल तैयार, तभी एक गांव-देहात का एक छात्र मजे लेकर कुछ गाने लगा. प्रहलाद नामक एक छात्र को चिढाते बोला -
अरे कहा है न-
वहीं एक तरफ दीवाल पर सिंहासन पर बैठे हुए सम्राट अशोक का चित्र टंगा था, देखते ही लगता था कि कोई बंदा यहां पर सिविल सर्विसेस की तैयारी में सम्राट अशोक को आदर्श मान रहा है, जरूर IAS, PCS बनना चाहता है. दूसरी दीवाल पर नियॉन, ऑर्गन, क्रेप्टॉन से सुसज्जित Periodic Table. शायद Chemistry की तैयारी भी चल रही है, एक जगह घी, तेल, चावल, दाल आदि को रखे देखा। उन्हीं के बीच चॉक से लिखा था Welcome 2009. कुछ पुराने पोस्टर या चित्रों के फाडे जाने या हटाये जाने के अवशेष दिख रहे थे, एक जगह विवेकानंद का चित्र था, बगल में अखबार की कोई कटिंग चिपकी थी जिसमें एक शख्स की Black and White फोटो दिखी । पूछने पर पता चला एक बंदा यहां का सिविल सर्विसेस में चुना गया था। इसी कमरे में रहता था। सो, हम लोगों ने उसके सम्मान में अखबार में आये उसके चित्र को कटिंग कर यहां चिपका दिया है, मकान मालिक कमरा देने से पहले ही हिदायत दे देता है, इस कटिंग को हटाना नहीं। दीवाल पर चिपके रहने देना है,
तहरी बनाई जा रही थी,उन्हीं सब के बीच कुछ हंसी-मजाक वाला बतकूचन भी चल रहा था, विषय था कौन....कहां.....क्या........कैसे.... हर बात के पीछे हंसी ठट्ठा जमकर हो रहा था.
एक बोले - अरे रामकिसुन जी, आप तो खाली एक अढैया खा लोगे और लगोगे सोने, थाली भी नहीं सरकाओगे कि कम से कम वही सरका दें, बाद में भले सुबह उठ कर सूखी कटकटा गई जूठी थाली को एक घंटा मांजोगे.
- अरे तो क्या हुआ, मांजते तो हैं न,मेरा तो ये मानना है कि खाना खाओ तो वहीं सो जाओ, थाली सरकाना मतलब एहसान फरामोश हो जाना है, कि, खा लिये और सरका दिये।
मैं रामकिसुन जी की खाना खाने और थाली न सरकाने के पीछे छुपे दर्शन को देख थोडा दंग था,हंसी-मजाक भी दर्शनशास्त्रमय हो उठा,तभी एक और विषय उठा - नमक, दरअसल बगल के कमरे से कोई छात्र नमक लेने आ पहुँचे. मैंने देखा नमक के नाम पर बडी-बडी डली थी डिब्बे में. मैं पूछ बैठा - अरे भई, ये तो पहले पुराने समय में मिलने वाला नमक है, बडे-बडे ढोके वाला,अब भी मिलता है क्या. ये तो आयोडाइज्ड नमक नहीं है।
एक बोले - यहां किसको बच्चा होने जा रहा है जो आयोडीन वाला नमक खाये.
सभी फिर एक बार ठठाकर हंसे.
अरे भई, सस्ताहवा नमक लिये, ढेला फोडे, डाल दिये. एतना सोचने लगे तो कर लिये तैयारी कम्पिटीशन की,
फिर भी, क्या अब भी ये मिलता है, मैंने तो समझा था बंद हो गया होगा.
बंद तो नहीं हुआ लेकिन अब भी बडे-बडे डली या ढेले के रूप में गांव देहात में बिकता है, गांव से आ रहे थे तो मय झोला-झक्कड यह ढेलेदार नमक भी टांग लाये थे।
दूसरे छात्र बोले - अरे बस नमक, और वो ससुराल से खटाई और घी लेते आये वह क्यों नहीं बताते।
पता चला जिस छात्र के बारे में बातें हो रही थीं उसकी शादी हो चुकी है और दो बच्चे भी हैं। पत्नी सुदूर देहात में अपने दो बच्चों के साथ है और ये महाशय यहां कम्पिटीशन की तैयारी कर रहे हैं,पत्नी का चयन शिक्षामित्र के रूप में गांव में हो गया है और कुछ खर्चा पानी घर का वह ही उठाये हुऐ हैं.
तो बात चल रही थी नमक के ढेले पर. कि......नमक का ढेला फोडा, दाल में डाला, दाल तैयार, तभी एक गांव-देहात का एक छात्र मजे लेकर कुछ गाने लगा. प्रहलाद नामक एक छात्र को चिढाते बोला -
अरे कहा है न-
हाय राम,
आईल कइसन बेला,
हमरे नौ-नौ गदेला ( बच्चे)
बलम मोरे फोडें ढेला..... बलम मोरे फोडें ढेला
आईल कइसन बेला,
हमरे नौ-नौ गदेला ( बच्चे)
बलम मोरे फोडें ढेला..... बलम मोरे फोडें ढेला
उसका इतना कहना था कि सब लोग फिर एक बार हंस-हंसकर लोट पोट होने लगे. दरअसल यह गीत बिरहा वाला गीत है और एक पत्नी के दर्द को बयान कर रहा है कि मेरे नौ-नौं बच्चे हो गये हैं और आमदनी का ये हाल है कि पति मेरे ढेला फोडने वाला काम कर रहे हैं.ढेला फोडना यानि निरर्थक काम करना.
मैं भी सोच में पड गया कि यार ये तर्ज तो काफी छांट कर लाया है पट्ठा.यहां तो सचमुच प्रहलाद पतिदेव घर से लाये हुए नमक का ढेला फोड रहे हैं, निरर्थक सरकारी नौकरी के लिये प्रयत्न किये जा रहे हैं जिसकी आशा अब बढती उम्र के कारण क्षीण होती जा रही है और वहां पत्नी है कि अपने बच्चों को लेकर किसी तरह चल रही है..
यह बैठकी काफी देर तक चली. अब तो पोस्ट भी लंबी हो चली है......चलिये बंद करता हूँ न आप लोग कहेंगे, क्या ढेलेदार पोस्ट है.....ससुर फोडते रह जाओ, कुछ न निकले
मैं भी सोच में पड गया कि यार ये तर्ज तो काफी छांट कर लाया है पट्ठा.यहां तो सचमुच प्रहलाद पतिदेव घर से लाये हुए नमक का ढेला फोड रहे हैं, निरर्थक सरकारी नौकरी के लिये प्रयत्न किये जा रहे हैं जिसकी आशा अब बढती उम्र के कारण क्षीण होती जा रही है और वहां पत्नी है कि अपने बच्चों को लेकर किसी तरह चल रही है..
यह बैठकी काफी देर तक चली. अब तो पोस्ट भी लंबी हो चली है......चलिये बंद करता हूँ न आप लोग कहेंगे, क्या ढेलेदार पोस्ट है.....ससुर फोडते रह जाओ, कुछ न निकले
हा हा हा बघाड़ा, सलोरी, अल्लाह्पुर सभी का यही दर्शन है
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