Tuesday, March 29, 2016

मंडूप चार्जर

       
                एक दिन में तीर्थयात्रा के दौरान काशी से प्रयाग बस में जा रहा था.. कनखोंसनी में नए पुराने गीत सुन रहा था.. एकाएक गाना रुक गया.. मोबाइल के चेहरे की संवेदनशीलता समाप्त हो चुकी थी.. मन की उत्कण्ठा चरम पे चली गयी.. हॉलीवुड से निरहू तक का सफ़र अब अपनी सभी सांसारिक मर्यादाएं लांघ चूका था.. ये कहा जाय कि फोन बेहयाई पे उतर आया था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.. मुझे कुछ जानकार लोगों ने बताया कि समस्या इसके सॉफ्टवेर में है.. तीर्थाटन के उपरान्त मैंने सेवा केंद्र में दिखाने का निश्चय किया.. परंतु तब तक पर्याप्त देर हो चुकी थी.. मैंने कुछ किया भी नहीं और सेवा केंद्र में ले जाने से पहले ही फोन ने मुझे दहेज़ उत्पीड़न के झूठे केस में फंसाने के लिए अपने चेहरे पर व्यापक चीर-फाड़ कर ली थी  
            सेवा केंद्र पहुँचने पर मेरा स्वागत तो कत्तई नही हुआ.. आजकल शिकायत दर्ज कराने थाने पे कम और मोबाइल के सेवा केंद्र में ज्यादा भीड़ लगती है..वहां मुझे एक गुलाबी पर्ची दिखा के मेरी प्रविष्टि रोजनामचा में कर ली गयी.. ऊपर एक टीवी भी लगा था जिसमे एम्टीवी के आध्यात्मिक भजन चालू थे.. टीवी देखने के लिए मुझे मेरी गर्दन इतनी ऊपर करनी पड़ती थी जितनी जिराफ को भोजन खाने के लिए करनी पड़ती है.. दृश्यों को देखकर मेरी गर्दन में तनाव आ गया 
           थोड़ी देर बाद मेरा नंबर डिस्प्ले हुआ.. मुझे बेहद ख़ुशी हुई कि अवश्य ही कोई सलवार सूटसुशीला शोरूम की भाँति मेरे लिए अक्षत चन्दन से थाली सजाये घी का दीप लिए खड़ी होगी.. परंतु समय खराब हो तो सागर में भी सूखी रेत ही नसीब होती है.. एक बेहद सुडौल मरदाना टाइप की कन्या सामने कुर्सी पर विद्यमान थी.. मेरे दुर्लभ संस्कारों की देन थी कि मैं उसका जेंडर डिस्टिंगइश् कर पाया वरना केश तो आजकल लौंडे भी रखते हैं.. निष्कर्षतः शोरूम में विद्यमान कन्याओं और सर्विस सेंटर में विद्यमान कन्याओं के रूप लावण्य में जो भेद होता है वही असल भेदभाव है और आज के बाजार की कड़वी सच्चाई है 
             उसने मुझे बताया कि यद्यपि आपका फोन प्रतिभूति काल में है तथापि इसको लगी चोट ये चीख चीख कर कह रही कि आपने इसका उत्पीड़न किया है.. इसलिए आप इसकी गारंटी का कोई लाभ वरण नही कर सकेंगे.. उसने बताया कि फोन का फोल्डर खराब है.. मैंने उससे मरम्मत का आर्थिक प्राक्कलन करने को कहा तो उसने बताया न्यूनतम 5000 रूपये.. मेरे लिए यह लव एट फर्स्ट साइत का यह पहला दुष्परिणाम नहीं था.. पके कोहड़े सी शकल लिए मैं वापस आ गया.. 
दो महीने बाद मेरे एक सहपाठी ने उसको दो हजार रुपये में ठीक किया.. मरता क्या न करता.. सोशल साइट्स का लती हूँ .. आप के बीच रहना आदत सी हो गयी है.. बनवाया.. चार महीने समझौता एक्सप्रेस चली.. अबकी समस्या चारजिंग में है.. मंडूप चार्जर मंगाया हूँ.. बारह घंटे की चारजिंग पे एक पोस्ट डाल देता हूँ.. सितारे गर्दिश में हैं और सूरज फलक पे.. पर वो सूट सलवार वाली अब दिखती नहीं.. शायद अब वो भी जीन्स टॉप में आ गयी होगी.. हमारा क्या? हमारी चप्पल टूट भी जाती है तो हम फीता बदल देते हैं.. जमीन रहनी चाहिए
             जर्जर हालात में पहुँच चूका मेरा फोन मेरी गरीबी का पर्याय बन चूका है.. मैं खुश हूँ.. लोगों को निरापवाद मोबाइल फ़ोन के नुक्सान के बारे में जागरूक करता हूँ.. ऑटोरिक्शा में, बस में, ट्रेन में खुले आम बाद विवाद करता हूँ.. अपने टूटे हुए मोबाइल को बैग में जमा कराके दुनिया की निष्प्रयोज्य ऑनलाइन व्यस्तता का अध्ययन करता हूँ.. फुलवरिया को व्हाट्सएप्प पे ललका धड़कता दिल नहीं भेज पाता बस लंच ब्रेक में एक चुम्मी दे देता हूँ.. ऐसा लगता है मानो जिंदगी में टाइम डबल हो गया है और करने के लिए बहुत कुछ है।

2 comments:

  1. जर्जर हालात में पहुँच चूका मेरा फोन मेरी गरीबी का पर्याय बन चूका है.

    हा हा हा मेरी भी आप बीती रही है

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