Wednesday, November 23, 2016

उम्मीद की आखिरी बस


इश्क का मारा कहते हो तो कह लो मुझको,
हूँ आज आवारा, कल को सुधर जाऊं शायद।

यायावर हूँ, पता नही कब तक भटकूँगा,
उम्मीदों की आखिरी बस से घर को जाऊं शायद।

जानता हूँ भारी हैं, पर किस्तों में चुका दूँगा,
यादों के इस सूद ब्याज से भी उबर पाऊं शायद।

'शब्दभेदी' चकोर अभी उलझा है कुवें के आभासी चाँद में,
आफ़ताब कल निकलेगा तो मैं भी निकल आऊं शायद।

Saturday, November 19, 2016

बेजारी का अँधियारा

बेजारी का अँधियारा भी बढ़ता है इस कदर,
दिन के शफ्फाक उजाले में भी खुद को टटोलता फिरता हूँ।

कोशिशें लाख कर लूँ दिल की बात छुपाने की,
कमजर्फ हूँ , हर राज परत-दर-परत खोलता फिरता हूँ।

दस्तकें दे-देकर थक गया मैं अपने ही दरवाजे पर,
अंदर कोई नही है खुद ही अंदर से बोलता फिरता हूँ।

आह ज़िन्दगी से अहा ज़िन्दगी तक पहुँचा ये सफर,
'शब्दभेदी' मैं यूँ ही शब्दों में सबकुछ बोलता फिरता हूँ।

Monday, November 14, 2016

बावफ़ा

हंसू? हंसने की कोई वजह मगर तो हो,
दर्द हो, दर्द की दवा भी मुख्तसर तो हो!
.
हूँ  खैरियत,  इससे इंकार  नहीं  मुझको,
मुश्किल-ए-हालात में थोड़ी कसर तो हो!
.
है खुदा उसकी खुदाई पर कोई शक नहीं,
मेरी नहीं, उसकी ही दुआ में असर तो हो!
.
कह तो दूँ मैं बावफ़ा तुझको बड़े शौक़ से,
मेरी भी वफ़ाओं का साथ मेरे हसर तो हो!
.
'शब्दभेदी' कैसे कहें वजूद तेरा ज़िंदा है?
तू है कहां?  कैसा है? कुछ खबर तो हो!

Friday, November 11, 2016

मुन्तजिर

हां हूँ मैं मुन्तजिर
लेकिन
मुझे इंतजार नहीं तेरा।

उलझने लाख है
लेकिन
दिल बेकरार नहीं मेरा।

बेशक बेशकीमती है तू
लेकिन
मैं अब तलबगार नहीं तेरा।

सजा रक्खी हैं हसरतों की दुकानें
लेकिन
कोई खरीददार नहीं मेरा।

'शब्दभेदी' हुआ यूँ तो बहुतों का अजीज
लेकिन
कोई तरफदार नहीं मेरा ।

रतजगों का हस्र

रतजगों की जद में आयी न जाने कितनी रातें,
ये सोचते थे कि ज़िंदगी पड़ी है सोने को।
.
लुटाते रहे अपना बहुत कुछ इसी नासमझी में,
फकीर हैं, हमारे पास है ही क्या खोने को।
.
रत्ती-रत्ती जो अरसे तक होते रहे हमारे,
ज़िद उनकी भी थी, उनका हमे एकमुश्त होने को।
.
शब्दभेदी बहुत कुछ है ज़िन्दगी में उसके सिवा,
उठो चलो अब आगे बढ़ो, वक्त कहां है रोने को।

Friday, November 4, 2016

मन के जीते जीत

मेरे जीवन के संघर्षों,
पल-छिन आओ, हर दिन आओ
सत बार तुम्हारा आवाहन है।

गांजते जाओ विपदाएं मुझपर
नहीं झुका हूँ, नहीं झुकूंगा
साहस मेरा न डिगाय मान है।

और ठोकरे देते जाओ,
अभी खड़ा हूँ, खड़ा रहूंगा
अभी तो मुझमें यौवन है।

कल वृद्ध अगर हो जाऊं तो क्या,
डटा रहा हूँ , डटा रहूंगा
अडिग रहना मेरा जीवन है।

'शब्दभेदी' मात मुझे देगा कौन!
विजयी रहा हूँ, विजयी रहूंगा
क्योंकि विजयी हमेशा मेरा मन है।