बेजारी का अँधियारा भी बढ़ता है इस कदर,
दिन के शफ्फाक उजाले में भी खुद को टटोलता फिरता हूँ।
कोशिशें लाख कर लूँ दिल की बात छुपाने की,
कमजर्फ हूँ , हर राज परत-दर-परत खोलता फिरता हूँ।
दस्तकें दे-देकर थक गया मैं अपने ही दरवाजे पर,
अंदर कोई नही है खुद ही अंदर से बोलता फिरता हूँ।
आह ज़िन्दगी से अहा ज़िन्दगी तक पहुँचा ये सफर,
'शब्दभेदी' मैं यूँ ही शब्दों में सबकुछ बोलता फिरता हूँ।
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