Monday, November 14, 2016

बावफ़ा

हंसू? हंसने की कोई वजह मगर तो हो,
दर्द हो, दर्द की दवा भी मुख्तसर तो हो!
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हूँ  खैरियत,  इससे इंकार  नहीं  मुझको,
मुश्किल-ए-हालात में थोड़ी कसर तो हो!
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है खुदा उसकी खुदाई पर कोई शक नहीं,
मेरी नहीं, उसकी ही दुआ में असर तो हो!
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कह तो दूँ मैं बावफ़ा तुझको बड़े शौक़ से,
मेरी भी वफ़ाओं का साथ मेरे हसर तो हो!
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'शब्दभेदी' कैसे कहें वजूद तेरा ज़िंदा है?
तू है कहां?  कैसा है? कुछ खबर तो हो!

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