Friday, September 16, 2016

हिदायत-ए-इश्क

तुम थे तो इक शौक चढ़ा था,
खुद को चमकाने - महकाने का।

तुम चले गए तो इक शौक चढ़ा है,
खुद को बहलाने - उलझाने का।

हिदायते इश्क लाख, कि शम्मा राख कर देगी,
जलना तो ज़िद होता है, दीवाने - परवाने का।

'शब्दभेदी' बाज आओ, तौबा कर लो,
इक भूल मुआफ़ है, हर जाने-अनजाने का।

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