दिल्ली तुमसे इश्क ना होगा हमें,
चल दिल्लगी ही कर लेता हूँ।
शहर-ए-इश्क तो अब छूटा हमसे,
बात-बेबात याद ही कर लेता हूँ।
अपनी गली में रहने की ख्वाहिश नहीं किसे,
ख्वाबों में ही सही उधर से गुजर लेता हूँ।
मजबूरी का सौदा है ये 'शब्दभेदी',
मैं गांव बदल-बदल कर शहर लेता हूँ।
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