हंसते थे हंसाते थे जो बेसुध पड़े हैं,
तुमने बेचारों की सोहबत बिगाड़ दिया है।
दोज़ख में जाओगे हम कहे देते हैं,
इश्क तुमने मासूमों को बर्बाद किया है।
घर के ज़िम्मेदार अब आवारा फिरते हैं,
तोहफा-ए-आशिकी जो तूने यार दिया है।
'शब्दभेदी' लगाओ बेड़ियां चढाओ फाँसी इश्क को,
इसने दबी-दबी सी आग को हवा दिया है।
No comments:
Post a Comment