ना मिलूं तुम्हे जश्न-ओ-बहार में शायद,
इन दिनों ग़म का खजाना ढूंढता हूँ।
अव्वल तो मैं बचता रहा नाजनीनो से मगर,
अब तो खुद से भी बचने का बहाना ढूंढता हूँ।
कहां गए वो दिन, वो चैन-ओ-सुकूँ कहां गये,
भरे दिन, नामुकम्मल नीदों में ऊंघता हूँ।
मिल जाऊं कहीं तो मुझे भी इत्तेला करना,
इक अरसे से मैं खुद, खुद ही को ढूंढता हूँ।
शून्य में भी खोजते हो सम्भावनाएं नासमझ,
'शब्दभेदी' कौन होगा तुझ सा दीवाना ढूंढता हूँ।
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