आज सुबह निकल पड़ा मैं
यादों के सफर में
खूब सारी धुंधली छवियां लिए
जो बहोत झकझोरने पर ही
समझ में आ रहीं थी...
एक धुंधली सी छवि बात कर रही थी मुझसे
उसने मुझे एक योद्धा से रूबरू करवाया,
जिसकी छवि भी बिलकुल धुंधली थी,
वो जो एक सन्तरी के तौर पर नियुक्त था
मैंने देखा वो योद्धा लड़ रहा था,
उन दुश्मनों से जो घुप्प अंधेरे से आ रहे थे,
मेरा वजूद मिटाने।
योद्धा भाव शून्य होकर लड़ रहा था
आस पास और भी बहुत लोग मूक खड़े थे
घावों से भरे होने के बावजूद
बिना रुके वो लड़े जा रहा था।
मेरा मन रो रहा था,
आँखे नम हो रही थी।
मैं महशूश कर रहा था,
उसके घावों से उभरते दर्द को..
नर्मदिल योद्धा दुआएं भी कर रहा था
दुआओं के एक-एक शब्द,
सफ्फाक चमक रहे थे
न ओझल होने वाली चमक लिए।
मैंने गुजारिश की..
'योद्धा की पहचान बता दो'
वो शख्स मेरी बातों को
नजरअंदाज करता रहा।
उसने मुझे एक और छवि दिखाई
जिसमें मैं योद्धा की
ऊँगली पकड़े खड़ा था।
उहापोह में बंधा हुआ मैं
भय से कांप रहा था
मैंने महशूश किया
योद्धा की दुआएं मुझे गोंद में
महफूज मुझे घर लिए जा रही थी
मैंने गुजारिश की ' कौन है ये योद्धा '
मैंने जब आँखे खोली तो.
बेतहासा मेरे आंशू निकल रहे थे
'अम्मां ' ये तुम थी..
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लेरी क्लार्क की कविता 'द वैरियर' का यह भावानुवाद मेरे जीवन की सच्ची योद्धा 'अम्माँ' तुमको समर्पित
तुम्हारे समर्पण, मेरे प्रति तुम्हारे विश्वास मुझे एहसास कराते हैं कि तुमसे बेहतर योद्धा मैंने अपने जीवन में नहीं देखा और ना ही देखूंगा..
मेरे लिए इस दुनिया में कहीं भी अगर ईश्वर शेष है तो तुम्हारे प्यार और तुम्हारी ममत्व में।
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