ये कैसा संशय है ,
तुम हो या नहीं हो ?
अगर तुम हो तो तुम्हारे प्रेम की ,
सुखानुभूति क्यों नहीं है !
अगर तुम नहीं हो तो ,
क्यों नहीं हूँ इक पल भी बगैर तुम्हारे !
अगर तुम हो तो तुम्हारे होने का ,
मुझको गुमान क्यों नहीं है !
अगर तुम नहीं हो तो ,
क्यों ये उम्मीद है लौट आने की तुम्हारे !
अगर तुम हो तो मेरे पल-छिन,
क्यों बिखरे पड़े हैं अस्त-व्यस्त
अगर तुम नहीं हो तो ,
क्यों मेरा हर लम्हा सिमटा है तुममे!
अगर तुम हो तो मेरे दिन,
क्यों वीरान हैं किसी टापू से !
अगर तुम नहीं हो तो ,
क्यों मेरी रातें अब भी हैं आलिंगन में तुम्हारे !
अगर तुम हो तो मेरी कलम,
क्यों लिखती नहीं तुम्हारे श्रृंगार !
अगर तुम नहीं हो तो ,
क्यों मेरी कृतियों में है अब भी नाम तुम्हारा !
ये कैसा संशय है ,
तुम हो या नहीं हो ?
- शब्दभेदी
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