Thursday, October 13, 2016

ग्लोबल गुमटी

        हमारे गाँव या कस्बे जब जगतें है , तो सड़क किनारे की चाय की गुमटियाँ भी ‪कुल्हड़‬ के साथ जग जाती हैं। चाय की हरेक चुस्की अपने आप मे तब सार्थक साबित होने लगती है जब बांस फल्ली की बनी बेंच पे बइठे-बइठे कुल्हड़ खाली करने तक आपको पुरे गाँव की खबर मिल जाती है । किशोर चचा की गईया बछड़ा बियाई है, अधार दादा का लड़कवा पीसीएस में सेलेक्ट हो गया है, दिन्नुआ की शादी तय हो गयी, सावन का आज सातवा दिन है, इस साल मलमास बढेगा, पांचक लगने वाला है और भी बहुत कुछ आसपास के चार गाँव की खबर चंद चुस्कियों में मिल जाती है ।
       दरअसल ये गुमटियां हमारे गांव और कस्बे की संस्कृति का अहम हिस्सा हुआ करती हैं। बचपन में दादा की बीड़ी और बाबू जी का पान लेने जाने से लेकर जवानी में चाय की बैठकी तक कहीं न कहीं हम सब इन गुमटियों से जुड़े होते हैं।
      अब बेबुनियादी जरूरतों को पूरा करने में, ज़िन्दगी की इस आपाधापी में बहुत कुछ पीछे छूट रहा है इसी जद में गुमटियां भी आ गयी, और छूट गयी वो बेफिक्री की चुस्कियां और बैठकी।
       एक महीने से दिल्ली में हूँ यहां भी बहुत सारी गुमटियां हैं , और कम से कम इतने लोगों को तो जानता हूँ कि गाहे-बगाहे बैठकी लगायी जा सके। लेकिन अपनी - अपनी व्यस्तताओं में सभी व्यस्त हैं और मैं भी। तो अक्सर अकेले चाय पीते हुए गुनगुना लेता हूँ ' दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन'।
       मैंने मान लिया था कि ज़िन्दगी की वो रवानगी अब जाने को है । लेकिन इत्तेफाकन आज ऐसे एक कार्यक्रम में जाना हुआ जहां अपने जैसे ही कुछ लोगों से मुलाकात हुई जो गुमटियों की बैठक व बेफिक्री की कमी अपने जीवन में महसूस करते हैं और इस बात को लेकर बहुत संजीदा भी हैं। उन लोगों ने इस खो रही संस्कृति को बचाने की एक मुहीम 'ग्लोबल गुमटी' की शुरुआत की है जो कि देश दुनिया के किसी भी कोने में रहकर आपको उस याद से जोड़े रखेगी जिसके छूटने का आपको अफ़सोस है।
     यह एक वेब पत्रिका है जिसे युवा साहित्यकार पुरष्कार से नवाजित, माटी से जुड़े लेखक निलोत्पल मृणाल और उनके साथियों ने शुरू किया है। खास बात यह है कि हम आप कोई भी इस मंच पर अपने विचार रख सकता है। फ़ेसबुक पर इस मंच के उदघाटन का इवेंट देखा तो सोचा आज रविवार है, दफ्तर की छुट्टी भी है, हो आता हूँ। लेकिन उम्मीद से बेहतर दिन रहा।
       नीलोत्पल भैया आपको और आपकी पूरी टीम को बहुत - बहुत धन्यवाद उस संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास करने के लिए। ढेर सारी बधाईयां और शुभकामनाएं भी। अपने स्तर पर मेरा भी प्रतिभाग रहेगा इस मुहीम में जैसा कि नीलोत्पल भैया से बात हुई है। इस गुमटी पर अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।

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