जर्रे-जर्रे में उसका निशाँ जहां नहीं होता,
मेरे लिए वो मंजर दुनिया-जहाँ नहीं होता!
मैं जाऊं कहीं भी, रहता हूँ कहीं भी,
ये बेसबब यादों का तूफाँ कहाँ नही होता।
हो तन्हाई का सहरा या शहर-ए-इश्क़ हो,
सिर पे मेरे कभी कहीं आसमां नहीं होता।
ये गम-ए-उल्फत, ये गम-ए-आशिकी,
मोहब्बत में कुछ भी खामखां नही होता।
बेशक होगा लाख काबिल अपना 'शब्दभेदी'
इश्क का मारा किसी काम का नही होता।
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