Sunday, October 30, 2016

जश्न-ए-चराग

वाई-फाई रूटर लगा है, 6जीबीपीएस इंटरनेट है। जो भी क्लिक करो फटाक से खुल जाता है। मतलब के दिवाली का भरपूर जश्न चल रहा है। कल शाम से ही शुभकामनाओं का लेनदेन चल रहा है, और देर रात तक ये सिलसिला चलता रहा।

सुबह देर से हुयी। फ्रेश-व्रेश हो के मोबाइल उठा लिया। दिवाली के जश्न में दो बजे गये। जब आँखे थक गयी तो बाकी चीजों पर भी ध्यान गया। इलाहाबाद जाने से पहले कुछ गंदगियां छोड़ गया था और कुछ गंदगियां ले कर भी आया था। अरे यार गंदे कपडों की बात कर रहा हूँ।

फिर क्या बाजीराव उठा, रूम के कोने-कोने में लगे मकड़ी के जालों को साफ किया , झाड़ू लगाया , किचन में दो दिनों से पड़े गंदे बर्तनों को साफ़ किया। लगभग पूरे कपड़े धुले फिर नहाया। अपनी चपलता से बाजीराव ने इसी बीच दाल चावल भी पका लिया। भोजन भी हो गया।

कल वापस लौटते वक्त बाजार से चार मोमबत्तियां लाया था। फ़्लैट के चारो कोने जला दिया। अब फिर मोबाइल ले कर बैठ गया हूँ। मोबाइल की स्क्रीन पर भी दिवाली एनिमेशन थीम लगा दिया। अब फिर से जुट गया हूँ। फेसबुक-व्हाट्सएप की जश्न-ए-चराग में।

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