पोलिटिक्स के है खेल निराला
मरै जो पब्लिक मरन दो साला!
.
मंहगा कुरता महंगी जैकिट
ऊप्पर से सेंट जरमनी वाला!
.
अच्छे दिन तुम्हरे कबहूं न होइहैं
लीडर के लाइफ झिंगा ला ला!
.
कसम राम कै मन्दिर होगा
आग लगे या होइ बवाला!
.
गरीब-बेरोजगार कै छत्तीस स्कीम
इनहूँ ने अपना काम निकाला!
.
मंहगाई ने कमर है तोरी
ईद-दिवाली पै निकले दिवाला!
.
देश के जनता भूखी पियासी
हांथन में इनकै अमरत प्याला!
.
लाइन में लग ल्यो सबका मिलेगा
पहिले बोलो हुल्ला ला ला!
.
वोट बैंक हौ तुम सब तो फिर
अरे कइसा गोरा कइसा काला!
.
अपनी उंगली अपने ही करना
नहीं तो होगा देश निकाला!
.
हाथ है तुमपे अखबार चला लो
तुमहूँ छापो खुब मिरच मसाला!
.
जब-जब बोलें, ताली बजाना
लो खाओ लड्डू पहिनो माला!
.
बिजनिस मैन का माफ किये हो
साहब! हमरो कर दो खेती वाला!
.
नहीं मिलेगा ठेंगा बुड़बक
खेल है सब ई पइसा वाला!
.
सैनिक है, उसका काम शहादत
इनने बस अफसोस निकाला!
.
अन्नदाता ने लगा ली फांसी
च्च.. करजे ने उसको मार डाला!
.
योग दिवस के बड़के बैनर-पोस्टर
भूखे भजन न होहिं गोपाला!
.
महाजन के पीछे भीड़ चली है
अब तो बना है वो ऊपरवाला!
.
शब्दभेदी मरो तुम गला फाड़ के
तुम्हरी न कउनो सुनने वाला!
Wednesday, June 21, 2017
भूखे भजन
परछाईं
सोचो जरा बिना किसी शख्स के उसकी परछाईं रहती है क्या!
_____________________
8 या 9 का रहा होऊंगा...
मेरी असीमित बदमाशियों की वजह से उन दिनों मुझ पर कभी प्यार-दुलार न दिखाने वाले बाउजी एक दिन काम से आते ही अचानक मुझसे लिपटकर रोने लगते हैं।
.
मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था लेकिन गम्भीर स्वभाव के अपने बाउजी को बेतहासा रोता देखकर बाल मन विगलित हो उठता है और मेरी भी अश्रु धाराएँ फूट पड़ती हैं।
.
अम्मा ने भी रोते हुए जब पूछना चाहा तो रुदन की अस्पष्ट आवाज में ही उन्होंने कुछ कहा और जवाब सुनकर अवाक वह भी जमीन पर बैठ गयी।
हम तीनों के रोने की आवाज सुनकर छोटी दीदी Kiran भी बगल वाले कमरे से दौडकर आती है और अम्मा से लिपटकर वह भी रोने लगती है।
.
मैं बाउजी का जवाब सुन तो नहीं पाया था लेकिन मुझे इतना जरूर समझ में आ गया था कि जरूर कोई बड़ी क्षति हुई है वरना मेरे पर्वत से विशाल हृदय वाले पिता को छोटी-मोटी मुसीबतें कभी हिला नहीं सकती थी।
दरअसल मुम्बई से दादा जी के देहांत की खबर आई थी....
.
आसपास के लोग इकट्ठा होने लगे, परिवार के अन्य लोग जो सूरत में ही रहते थे आने लगे।
.
लोगों के बार-बार पूछने से काफी देर बाद मुझे भी समझ में आया कि दादा जी नहीं रहे। जब मुझे इस दुःख की घड़ी का कारण पता चला तो मन के सागर में एक बार फिर आसुओं की लहरें उठी...
.
उस दिन मैं एक पल के लिए बाउजी की गोद से अलग नहीं होना चाहता था, हालाँकि दादाजी का पार्थिव शरीर जल्द ही मुम्बई से लेने जाना था इसीलिए जैसे तैसे लोगों ने मुझे बाउजी से अलग किया।
.
अब सबकुछ बदल गया था न मैं पहले जैसी बदमाशियां करता था और ना ही बाउजी मुझपर गुस्सा करते थे। कभी कुछ गलतियां कर भी देता तो उसके लिए प्रेम से समझाते और मुझे मेरी घर और समाज के प्रति जिम्मेदारियों का एहसास कराते।
.
वक्त बीता.... बाउजी के नक्शे कदम पर चलते हुए मैं बड़ा हुआ और आज इस जगह पर हूँ। मैं उनके ही जैसा बनने की चाह रखने लगा था। कई मायनों में मैंने उनकी बराबरी भी कर ली है और कई मायनों में आगे भी निकल गया हूँ..
अब परिवार में बाउजी दादा जी की जगह पर हैं और मैं उनकी जगह...
लेकिन अब भी उनके व्यवहार के कुछ ऐसे हिस्से हैं जिसे पाने में लिए मुझे शायद कई जन्म लेने पड़ेंगे!
.
आज जब उस दिन को याद करके खुद से ही सवाल-जवाब कर रहा हूँ और आदतन उनकी जगह खुद को और दादा जी की जगह उन्हें रखने की कोशिश कर रहा हूँ तो..
अचानक दिल धक्क सा रहा गया कि अगर मुझसे मेरा असमान छीन जायेगा तो.. मुझमें तो उनके जैसी मजबूती भी नहीं है, मैं तो टूट जाऊंगा।
सोचो जरा बिना किसी शख्स के कभी उसकी परछाई रहती है क्या!
__________________________
#FathersDay
Saturday, June 17, 2017
बाऊजी
हां बाऊजी की याद आयी..
Wednesday, June 14, 2017
ढहती स्मृतियां
.
गिनती तो मुझे बड़ी दीदी ने पहले ही सिखा दिया था लेकिन मैंने यहां आकर गदहिया गोल में ही सीखा इकाई, दहाई और सैकड़ा के हिसाब से दुनिया को देखना।
.
कुछ कवितायें जिन्हें मैं आज तक नहीं भूल पाया हूँ इसी स्कूल के सामने सांझ के पहर गोलाई में बैठकर रटी थी हमने। अपने बोरे पर दूसरे को बिठाकर मित्रता करना और किसी का अमरूद खाकर उसको अपना बेर खिलाना यहीं सीखा मैंने।
.
दूसरे गांवों के मेरे दोस्त मुझे मिलते थे नहर पर हम एक दूसरे के कंधे में कन्धा डालकर स्कूल तक पहुंचते थे। आज उनमें से कु्छ कंधे करते हैं खेती किसानी और कुछेक सरकारी नौकर हैं, और कुछ मेरी तरह घर से दूर रहकर करते हैं प्राइवेट नौकरी और खुशी-खुशी उठाते हैं ज़िम्मेदारियों का बोझ।
.
मेरे गांव तक पहुंचने के लिए आप देश दुनिया के किसी कोने से आये, आपको मेरे स्कूल के रास्ते से होकर गांव जाना होगा। मैं जब भी गुजरता हूँ इस रास्ते से एक नजर स्कूल को जरूर देखता हूँ। स्कूल के आसपास के जगहों से मुझे इतना प्रेम है जैसे मेरा उन जगहों से जनम-जनम का नाता हो।
.
आस-पास के 10 गांव में एक ही मान्टेशरी स्कूल था। हालांकि कुछ गांव में सरकारी स्कूल भी थे लेकिन उनका होना सिर्फ बच्चों के अभिभावकों को वजीफा के नाम पर प्रति माह 3 किलो गेंहूँ मिलना और दो टूटे-फूटे कमरे का होना था।
.
इस बार जब घर जाना हुआ तो पता चला कि बंद हो गया है यह स्कूल।आज भी नहीं हैं आसपास के 10 गांवों में बड़े स्कूल लेकिन बड़ी बसें आती हैं गांव से बच्चों को ले जाने के लिए जो स्कूल 6 कोस दूर टाउन के पास है वहां के लिए।
.
सोचता हूँ अब कहाँ होंगे वो मास्टर जिनको गर्व होता था इस स्कूल का हिस्सा होने पर और अब कहाँ गयी वो हर गांवों से निकलने वाली मस्तानों की टोली जो एक स्वर में कहती थी 'मॉन्टेशरी में पढ़ते हैं'। वक़्त की आंधी में इस स्कूल के उड़ते छप्परों और ढहती दीवारों के साथ मेरे दिल की एक सुंदर सी स्मृति भी ढ़हने के कगार पर है।
.
देखो...
दूर वहां
जहां दिन ढल रहा है,
एक वक्त की बात है
कई सूरज उगा करते थे।
________________________
शब्दभेदी
Monday, June 12, 2017
कलम और कलमकार
बढ़ता नफरतों का व्यापार क्या है!
.
सभी ने मांगे अम्नो-चैन इबादत में
तो सजा ये बैर का बाज़ार क्या है!
.
तय जो था आवाम की आवाज लिखना
ये सियासती बोल का अख़बार क्या है!
.
चलो माना कि सबको जान है प्यारी
मियां तुम्हारे भीतर का खुद्दार क्या है!
.
निशाने तोप के हर वक्त कलम थी,
ये आज के शाहों की सरकार क्या है!
.
जो अपनी गर्दन को मैं गर्दन ही न मानू
शब्दभेदी तेरे हाथ की तलवार क्या है!
-------------------------------------
#पीत_पत्रकारिता
मैं भी तो इक दिल रखता हूँ!
मैं भी तो इक दिल रखता हूँ!
.
हां दिल कितना भी तन्हा हो
चेहरे पर महफिल रखता हूँ!
.
चेहरा जितना सुलझा दिखता है
दिल में उतनी मुश्किल रखता हूँ!
.
डूब न जाऊं हिज्र के दरिया में
यादों का अपना साहिल रखता हूँ!
.
उठना-गिरना, गिरकर उठना
यूँ इरादे मुस्तकिल रखता हूँ!
___________________
- शब्दभेदी
Wednesday, June 7, 2017
कैसा ये इश्क है!
.
चेतना और ऋषि अब साथ तो नहीं थे लेकिन अभी तक एक-दूसरे से पूरी तरह जुदा भी नहीं हुए थे। चेतना के ब्याह को सात महीने हो गए थे। धीरे-धीरे चेतना अपनी गृहस्थी में रमती चली जा रही थी और उधर ऋषि तमाम लोगों के समझाए-बुझाये जाने के बाद अपने आगे के जीवन पर फोकस करने लगा था।
.
लेकिन दोनों ही एक-दूसरे की पूरी खबर रखते थे।
चेतना चोरी-छिपे फेसबुकिया ऋषि के अकाउंट की ताक-झांक कर लेती थी। उसके लिए यही पर्याप्त था.. क्योंकि उसे पता था वास्तविक जीवन में बनावटी खुशी और 'सब ठीक है' वाला हाल लेकर जीने वाला ऋषि अपनी इस आभासी दुनियां में सबकुछ खुलकर साझा करता है।
.
ऋषि ने भी चेतना के जाने के बाद भले ही उसकी सारी फोटोज डिलीट कर दिया हो, उसके सब नम्बर ब्लॉक कर दिया हो लेकिन फ़ेसबुक पर कुछ कॉमन दोस्त, जो कि चेतना के रिश्तेदार थे, उनसे अक्सर बात करता। हालांकि ऋषि हमेशा मैसेज अपनी तरफ से ही करता था लेकिन चेतना के बारे में उनसे खुद कभी नहीं पूछता उसे उम्मीद रहती की सामने से खुद इस बारे में बात छेड़ी जाएगी..
चैट के दौरान उसकी उत्सुकता बनी रहती की मेरे बारे में चेतना क्या कहती है!
.
चेतना के कॉलेज की सहेली सिमरन, कृष्ण और राधा के बीच ऊधो का काम करती। सिमरन अक्सर ऋषि को समझाती कि चेतना अब अपने नए जीवन में खुश है तुम भी सब भूलकर आगे बढ़ो। ऋषि जानता था कि ये सारी बातें चेतना ही उसे समझाने के लिए कहलवाती थी।
.
इसी तरह वक़्त बीतता रहा.. ऋषि भी धीरे-धीरे फेसबुक की आभासी दुनिया के अलावां भी खुश रहने की कोशिश करने लगा था और लगभग सफल भी हो रहा था।
.
आज दफ्तर से लौटने के बात ऋषि बॉलकनी में बैठकर पेंडिंग में पड़े मैसेजेज को चेक कर रहा था तो स्क्रॉल करते हुए उसकी नजर सिमरन के मैसेज पर गयी, जो पिछले 15 दिनों से पेंडिंग में था। ऋषि ने मैसेज ओपन किया.. जवाब न देने की शिकायतों के तकरीबन बीस मैसेज पढ़ते हुए सरसरी निगाह से आगे बढ़ रहा था कि एक मैसेज पर अचानक वो रुका..
.
हेल्लो ऋषि मैं चेतना... इतना पढ़ते ही तो ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गयी, फोन को किनारे रखकर वो शून्य भाव से आसमान तकने लगा। बड़ी हिम्मत करके उसने फिर पढ़ना शुरू किया.. 'मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर कई बार फोन किया तुमने नए नम्बरों से फोन उठाने भी बंद कर दिया है'
.
'अगले दिन रात को 12 बजे के बाद मैंने तीन बार फोन किया तुम्हारा नम्बर बिजी जा रहा था'
'अब क्या मैं इतनी भी गैर हो गयी कि मुझसे कुछ बताओगे नहीं'
.
ऋषि को चेतना की परेशानियों का सबब समझ में आ रहा था.. उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी।
.
'मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से...'
फोन के म्यूजिक प्लेयर में जाकर ऋषि ने अपना हमेशा का पसंदीदा गाना प्ले कर दिया और साथ-साथ गुनगुनाते हुए सोचने लगा कि सच्ची मोहब्बत की अधूरी कहानियां भी अजीब होती हैं।
-------------------------------------------------------------
शब्दभेदी