'शब्दभेदी'
Monday, June 12, 2017
चाँद
रात अंसुवन से
गीला हो गया था 'चाँद'
.
अहाते के डारे पर
सूखने को टांग कर
सो गया था मैं!
.
सवेरे नींद खुलते ही
अधखुली आंखों ने देखा..
.
उसका चाँद
वक़्त की आंधी में
दूर उड़ता जा रहा था!
__________
-
शब्दभेदी
1 comment:
Unknown
June 17, 2017 at 6:59 AM
बहुत बढ़िया सुपर्ब
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