Monday, June 12, 2017

कलम और कलमकार

आप अपनों से ही ये तकरार क्या है
बढ़ता नफरतों का व्यापार क्या है!
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सभी ने मांगे अम्नो-चैन इबादत में
तो सजा ये बैर का बाज़ार क्या है!
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तय जो था आवाम की आवाज लिखना
ये सियासती बोल का अख़बार क्या है!
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चलो माना कि सबको जान है प्यारी
मियां तुम्हारे भीतर का खुद्दार क्या है!
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निशाने तोप के हर वक्त कलम थी,
ये आज के शाहों की सरकार क्या है!
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जो अपनी गर्दन को मैं गर्दन ही न मानू
शब्दभेदी तेरे हाथ की तलवार क्या है!
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#पीत_पत्रकारिता

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