सच्ची मोहब्बत की अधूरी कहानियां भी अजीब होती हैं। बीते कल के दो प्रेमी.. दोनों चाहते हैं कि उनका बीता प्रेम अपने अतीत को भूलकर वर्तमान से प्रेम करने लगे। लेकिन कहीं जब ये सच होने लगता है तो दोनों को ही चिंता होने लगती कि आखिर इतने दिनों का प्रेम कोई इतनी आसानी से कैसे भूल सकता है। कैसे कोई इतनी आसानी से अपने वर्तमान में खुश हो सकता है।
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चेतना और ऋषि अब साथ तो नहीं थे लेकिन अभी तक एक-दूसरे से पूरी तरह जुदा भी नहीं हुए थे। चेतना के ब्याह को सात महीने हो गए थे। धीरे-धीरे चेतना अपनी गृहस्थी में रमती चली जा रही थी और उधर ऋषि तमाम लोगों के समझाए-बुझाये जाने के बाद अपने आगे के जीवन पर फोकस करने लगा था।
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लेकिन दोनों ही एक-दूसरे की पूरी खबर रखते थे।
चेतना चोरी-छिपे फेसबुकिया ऋषि के अकाउंट की ताक-झांक कर लेती थी। उसके लिए यही पर्याप्त था.. क्योंकि उसे पता था वास्तविक जीवन में बनावटी खुशी और 'सब ठीक है' वाला हाल लेकर जीने वाला ऋषि अपनी इस आभासी दुनियां में सबकुछ खुलकर साझा करता है।
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ऋषि ने भी चेतना के जाने के बाद भले ही उसकी सारी फोटोज डिलीट कर दिया हो, उसके सब नम्बर ब्लॉक कर दिया हो लेकिन फ़ेसबुक पर कुछ कॉमन दोस्त, जो कि चेतना के रिश्तेदार थे, उनसे अक्सर बात करता। हालांकि ऋषि हमेशा मैसेज अपनी तरफ से ही करता था लेकिन चेतना के बारे में उनसे खुद कभी नहीं पूछता उसे उम्मीद रहती की सामने से खुद इस बारे में बात छेड़ी जाएगी..
चैट के दौरान उसकी उत्सुकता बनी रहती की मेरे बारे में चेतना क्या कहती है!
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चेतना के कॉलेज की सहेली सिमरन, कृष्ण और राधा के बीच ऊधो का काम करती। सिमरन अक्सर ऋषि को समझाती कि चेतना अब अपने नए जीवन में खुश है तुम भी सब भूलकर आगे बढ़ो। ऋषि जानता था कि ये सारी बातें चेतना ही उसे समझाने के लिए कहलवाती थी।
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इसी तरह वक़्त बीतता रहा.. ऋषि भी धीरे-धीरे फेसबुक की आभासी दुनिया के अलावां भी खुश रहने की कोशिश करने लगा था और लगभग सफल भी हो रहा था।
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आज दफ्तर से लौटने के बात ऋषि बॉलकनी में बैठकर पेंडिंग में पड़े मैसेजेज को चेक कर रहा था तो स्क्रॉल करते हुए उसकी नजर सिमरन के मैसेज पर गयी, जो पिछले 15 दिनों से पेंडिंग में था। ऋषि ने मैसेज ओपन किया.. जवाब न देने की शिकायतों के तकरीबन बीस मैसेज पढ़ते हुए सरसरी निगाह से आगे बढ़ रहा था कि एक मैसेज पर अचानक वो रुका..
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हेल्लो ऋषि मैं चेतना... इतना पढ़ते ही तो ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गयी, फोन को किनारे रखकर वो शून्य भाव से आसमान तकने लगा। बड़ी हिम्मत करके उसने फिर पढ़ना शुरू किया.. 'मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर कई बार फोन किया तुमने नए नम्बरों से फोन उठाने भी बंद कर दिया है'
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'अगले दिन रात को 12 बजे के बाद मैंने तीन बार फोन किया तुम्हारा नम्बर बिजी जा रहा था'
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चेतना और ऋषि अब साथ तो नहीं थे लेकिन अभी तक एक-दूसरे से पूरी तरह जुदा भी नहीं हुए थे। चेतना के ब्याह को सात महीने हो गए थे। धीरे-धीरे चेतना अपनी गृहस्थी में रमती चली जा रही थी और उधर ऋषि तमाम लोगों के समझाए-बुझाये जाने के बाद अपने आगे के जीवन पर फोकस करने लगा था।
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लेकिन दोनों ही एक-दूसरे की पूरी खबर रखते थे।
चेतना चोरी-छिपे फेसबुकिया ऋषि के अकाउंट की ताक-झांक कर लेती थी। उसके लिए यही पर्याप्त था.. क्योंकि उसे पता था वास्तविक जीवन में बनावटी खुशी और 'सब ठीक है' वाला हाल लेकर जीने वाला ऋषि अपनी इस आभासी दुनियां में सबकुछ खुलकर साझा करता है।
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ऋषि ने भी चेतना के जाने के बाद भले ही उसकी सारी फोटोज डिलीट कर दिया हो, उसके सब नम्बर ब्लॉक कर दिया हो लेकिन फ़ेसबुक पर कुछ कॉमन दोस्त, जो कि चेतना के रिश्तेदार थे, उनसे अक्सर बात करता। हालांकि ऋषि हमेशा मैसेज अपनी तरफ से ही करता था लेकिन चेतना के बारे में उनसे खुद कभी नहीं पूछता उसे उम्मीद रहती की सामने से खुद इस बारे में बात छेड़ी जाएगी..
चैट के दौरान उसकी उत्सुकता बनी रहती की मेरे बारे में चेतना क्या कहती है!
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चेतना के कॉलेज की सहेली सिमरन, कृष्ण और राधा के बीच ऊधो का काम करती। सिमरन अक्सर ऋषि को समझाती कि चेतना अब अपने नए जीवन में खुश है तुम भी सब भूलकर आगे बढ़ो। ऋषि जानता था कि ये सारी बातें चेतना ही उसे समझाने के लिए कहलवाती थी।
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इसी तरह वक़्त बीतता रहा.. ऋषि भी धीरे-धीरे फेसबुक की आभासी दुनिया के अलावां भी खुश रहने की कोशिश करने लगा था और लगभग सफल भी हो रहा था।
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आज दफ्तर से लौटने के बात ऋषि बॉलकनी में बैठकर पेंडिंग में पड़े मैसेजेज को चेक कर रहा था तो स्क्रॉल करते हुए उसकी नजर सिमरन के मैसेज पर गयी, जो पिछले 15 दिनों से पेंडिंग में था। ऋषि ने मैसेज ओपन किया.. जवाब न देने की शिकायतों के तकरीबन बीस मैसेज पढ़ते हुए सरसरी निगाह से आगे बढ़ रहा था कि एक मैसेज पर अचानक वो रुका..
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हेल्लो ऋषि मैं चेतना... इतना पढ़ते ही तो ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गयी, फोन को किनारे रखकर वो शून्य भाव से आसमान तकने लगा। बड़ी हिम्मत करके उसने फिर पढ़ना शुरू किया.. 'मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर कई बार फोन किया तुमने नए नम्बरों से फोन उठाने भी बंद कर दिया है'
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'अगले दिन रात को 12 बजे के बाद मैंने तीन बार फोन किया तुम्हारा नम्बर बिजी जा रहा था'
ऋषि को नए नम्बर से आने वाले फोन और वेटिंग कॉल का क्रम याद करके तसल्ली हुई कि ये चेतना ही थी।
' तुम ब्याह कब कर रहे हो सुना है तुमने शादी के लिए हां कर दी है'
'अब क्या मैं इतनी भी गैर हो गयी कि मुझसे कुछ बताओगे नहीं'
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ऋषि को चेतना की परेशानियों का सबब समझ में आ रहा था.. उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी।
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'मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से...'
फोन के म्यूजिक प्लेयर में जाकर ऋषि ने अपना हमेशा का पसंदीदा गाना प्ले कर दिया और साथ-साथ गुनगुनाते हुए सोचने लगा कि सच्ची मोहब्बत की अधूरी कहानियां भी अजीब होती हैं।
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शब्दभेदी
'अब क्या मैं इतनी भी गैर हो गयी कि मुझसे कुछ बताओगे नहीं'
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ऋषि को चेतना की परेशानियों का सबब समझ में आ रहा था.. उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी।
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'मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से...'
फोन के म्यूजिक प्लेयर में जाकर ऋषि ने अपना हमेशा का पसंदीदा गाना प्ले कर दिया और साथ-साथ गुनगुनाते हुए सोचने लगा कि सच्ची मोहब्बत की अधूरी कहानियां भी अजीब होती हैं।
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शब्दभेदी
मोहब्बत की अधूरी कहानियां
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