अब मनुष्य अंतरिक्ष में भी अपने निशान छोड़ने में सफल हुआ है। उसे मंगल ग्रह पर भी जल यानी जीवन ढूंढ़ने में कामयाबी मिली है। नासा की हाल में आई रिपोर्ट में मंगल पर जल होने के प्रमाण इस बात की गवाही हैं कि मानव जीवन के लिए जल कितना आवश्यक है। तमाम पुरानी सभ्यताएं किसी न किसी नदी के आसपास विकसित हुई थीं। यह भी इतिहास का हिस्सा है कि कुछ सभ्यताएं पानी की कमी के कारण लुप्त हो गर्इं। चाहे वह मिस्र में नील हो या फिर इराक में फरात या चीन की यांग्त्से नदी, ये सब आज भी अपनी प्राचीन सभ्यताओं का स्मरण कराती नजर आती हैं।
मगर प्राचीन सभ्यता से लेकर खुद को विकसित कहने वाली वर्तमान सभ्यता तक को देखें, तो आज के इंसान के लिए साफ पानी का होना फिर एक प्रमुख वैश्विक समस्या का रूप लेती नजर आ रही है। पानी की कमी आज न केवल अहम मुद्दा बनता जा रहा है, बल्कि हमारी विकसित और विकासशील दुनिया के लिए चुनौती भी
पूरे विश्व पर गहरी नजर रखने वाले वैज्ञानिक और विचारक तो नब्बे के दशक से ही कहने लगे थे कि अगर बीसवीं शताब्दी के युद्ध तेल के लिए हो रहे हैं, तो अगली शताब्दी की जंग पानी के लिए होगी। इक्कीसवी शताब्दी में मनुष्य की सबसे बड़ी चुनौती है साफ और पीने लायक पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना। जल है तो जीवन है, कहने का अर्थ यही है कि जल की बर्बादी से समाज को रोका जाए। जल की कमी प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों मानी जा सकती है। लेकिन आज मनुष्य जिस प्रकार प्रकृति को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश कर रहा है, इसे मानव निर्मित समस्या ही कहना उचित होगा।
संयुक्त राष्ट्र की ‘जीवन के लिए जल’ रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा साफ पानी से वंचित है। इसका कारण पानी के पर्याप्त स्रोत का न होना नहीं, बल्कि पानी का गलत इस्तेमाल और बर्बादी है। पानी की कमी सभी उपमहाद्वीपों में देखी गई है। दुनिया का एक चौथाई हिस्सा पानी के आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी से ग्रस्त है। कुछ इलाकों में जल के पर्याप्त स्रोत तो हैं, लेकिन पूरी आबादी के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक एक अरब अस्सी करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे होंगे, जहां पानी की किल्लत होगी और इसी कारण विश्व का दो तिहाई हिस्सा सामाजिक तनाव से ग्रस्त होगा। ऐसे आंकड़े हमें चौंकाने के लिए पर्याप्त हैं। इसीलिए जब हम मंगल ग्रह पर जीवन के निशान खोजने के लिए जल को एक प्रमुख स्रोत मानते हैं, तो अपनी सभ्यता और जीवन को बचाए रखने के लिए जल का महत्त्व भी समझना होगा।
ऐसा माना जाता है कि विश्व में सात अरब लोगों के लिए पर्याप्त पानी है, लेकिन इसका वितरण बहुत असमान रूप से हुआ है। इसमें भी अधिकतर जल प्रदूषित है या बर्बाद हो जाता है। अगर मनुष्य के लिए जल की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने में कोताही हो रही है, तो बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि मनुष्य ही मनुष्य के लिए काम आने वाले प्राकृतिक स्रोतों को अपनी नीतियों, छोटी सोच और छोटे-छोटे फायदों के लिए बर्बाद कर रहा है। मनुष्य क्यों यह नहीं सोच पा रहा कि आने वाली पीढ़ी के लिए यह धरती रहने योग्य बनाए रखनी है।
आज शहरों में हर घर तक साफ पीने लायक पानी पहुंचाना एक समस्या है। यही कारण है कि लोग पीने योग्य पानी के लिए आरओ फिल्टर या दूसरे साधनों का उपयोग करते हैं। सब जानते हैं कि एक लीटर पीने का पानी बनाने में आरओ द्वारा कितना पानी गटर में चला जाता है। इसमें बिजली की कितनी बर्बादी होती है। एक बार पानी टैंक में पहुंचाया जाता है और फिर इसे दुबारा आरओ द्वारा बर्बाद किया जाता है। आज जिस प्रकार के शौचालय आदि उपयोग में आ रहे हैं उनमें भी पानी की बर्बादी होती है।
आधुनिक जीवन की चकाचौंध हमसे धरती के अंदर का साफ पानी भी छीन रही है। शहरों के आसपास के पुराने जलाशयों को पाट कर उन पर निर्माण किए जा रहे हैं। ये जलाशय धरती के अंदर पानी के स्तर को बनाए रखते हैं। इससे पर्यावरण को बचाए रखने में भी सहयोग मिलता है। लेकिन अपनी सुविधा के लालच में हम आने वाली पीढ़ी के संसाधन छीन रहे हैं।
मानव शरीर में पचपन से सत्तर प्रतिशत जल होता है और इस स्तर को बनाए रखने के लिए जल का शरीर में पहुंचते रहना जरूरी है। जल ही अगर जीवन है, तो मनुष्य के लिए इस जीवन के स्रोत को बनाए रखना सबसे प्रमुख होना चाहिए, लेकिन सवाल है कि विश्व में जल की समस्या से लड़ने के पर्याप्त प्रयास हो रहे हैं या नहीं? भारत नदियों का देश है, वह विश्व में नदियों को बचाने में विशेष योगदान दे सकता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि धरती या जल हमें विरासत में नहीं मिला है, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी से लिया हुआ ऋण या कर है, जो हमें उन्हें सही-सलामत लौटाना है।
जल संसाधनों को बचाए रखने से हमें कई वैश्विक समस्याओं का हल भी मिलता है। विश्व में कई राजनीतिक मुद्दे केवल पानी के सहयोग की नीति के आधार पर युद्ध के स्थान पर द्विपक्षीय सहयोग में बदल गए हैं। इसलिए आज सार्वभौमिक जल के उपयोग के लिए सहयोग की जरूरत है। इससे कई सामाजिक मुद्दों का समाधान भी हो सकता है। आज अगर हथियारों पर बर्बाद होने वाली दौलत को साफ पानी के संसाधनों को बचाने में लगा दिया जाए, तो विश्व में शांति और सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ हम आने वाली पीढ़ी का ऋण भी चुका पाने में सफल हो सकते हैं। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व भर में वाहवाही हो रही है और भारत नई वैश्विक व्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता प्रतीत हो रहा है, तो क्यों न उसे विश्व में जल सहयोग नीति को लेकर प्रमुख भूमिका निभाने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन विश्व सहयोग से पहले हमें अपने ही देश के जल संसाधनों का उचित संरक्षण और भंडारण करना होगा।
हमें जल को अपनी राष्ट्र धरोहर समझ कर बचाना होगा। इसलिए जब भी आप साफ पानी पीएं, तो यह न भूलें कि आज भी विश्व की आबादी का पांचवां हिस्सा पीने के साफ पानी से वंचित है और यह पानी जो आपके गिलास में है, यह आपकी सभ्यता और जीवन के होने का प्रमाण है। यह जल आने वाली पीढ़ी का आप पर ऋण है, जो उन्हें वापस देना है। इसलिए अगर हम विकसित और ज्ञानी सभ्यता के रूप में आने वाली सभ्यताओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले अपने जीवन स्रोत जल को आस्था पूर्वक बचाना होगा, क्योंकि इसी में हर आस्था जीवित और शुद्ध रह सकती है।