देख लो भैया छात्र राजनीती का बंटाधार । कम से कम इलाहाबाद में तो, मैं नहीं मान सकता की छात्र की राजनीति छात्र ही करते हैं । लगभग शतरंज के खेल जैसा होता है सबकुछ । छात्रों की सकल में मोहरे लगा दिये जाते और पूरा खेल कोई और खेल रहा होता है । इन मोहरों को पेश किया जाता है क्रन्तिकारी के तौर पर । खुद को बौद्धिक मानने वाले हजारों छात्रों की भीड़ गवारों की तरह इसी मोहरे के पीछे खडी होती है । और अंत में उस मोहरे को अपनी जरूरत के हिसाब से खिलाडी जहां चाहता है वहां रख देता । पीछे खड़ा हुजूम अब खुद को ठगा महसूस करने लगता है । ऐसा इसलिए क्यूंकि वो मोहरा नहीं है, उसकी बौद्धिकता जाग जाती है, बचे-खुचे सिद्धांतों को वोअपनी आँख खोलने में लगा देता । खैर जब आप दूर खड़े होकर तमासा देखो तो मजा आता मोहरे को भी देखकर और उसके पीछे के हुजूम को भी देखकर । खिलाडी का क्या है पिद्दी से हाथी, घोडा , ऊँट या वजीर मारकर और कभी-कभी तो पिद्दी से पिद्दी ही मारकर ही खुस हो लेता है ।
मुद्दे पे आता हूँ, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वर्तमान अध्यक्ष ऋचा सिंह ने सपा ज्वाइन कर लिया और उनके पैतृक जिले अलीगढ़ या फिर उनकी कर्मभूमि इलाहाबाद से उन्हें विधायकी का टिकट भी मिलने वाला है । मैडम ने जब सत्र की शुरुआत में छात्रसंघ चुनाव के चंद दिनों पहले अध्यक्ष पद के लिए मैदान में आयी तो बौद्धिक , विकासवादी और बड़ी संख्या तथाकथित नारीवादी (खुद को समझने वाले ) लोगों ने भी इस मोहरे के पीछे की भीड़ होने का काम किया।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने गाँधी जी पीछे खड़ी भेड़ियाधसान को देख के चिंता प्रकट की थी । भगत सिंह कहते थे 'आँख मूंद के किसी के पीछे चलना भी एक तरह की गुलामी होती है ।' सच है आप किसी के व्यक्तित्व को जानिए उसके विचारों और आदर्शो को जानिए , समझिये फिर उसके पीछे जाईये तो ठीक है । खोखली उम्मीदों को लेकर किसी के पीछे भागना भी कहा सही होता है । जब मेरे जैसे कुछ लोगों ने चुनाव में सपा पैनल के समर्थन और कुछ क्रांति की मूल से परे जा रही बातों पर आपत्ति जताई थी तो इन अंधे समर्थको ने या यूँ कह लो इन गुलामो ने हमारी बहुत किरकिरी की। और कहा इनकी आदत है हर जगह टांग लड़ाने की ।
अब मेरा सवाल सिर्फ उनके उन्ही समर्थकों से है जो छात्रसंघ चुनाव से पहले सपा पैनल के समर्थन पर निराश लोगों को चूरन दे रहे थे अब अक्ल आई हो तो समझदारी दिखाओ गवारों की तरह भीड़ का हिस्सा न बनों । और हां दीदी जी को ढेर सारी बधाइयाँ राजनीति में वैसे नित नये मुकाम हासिल करिये जैसे हमारे देश के नेता करते रहते है । एक निवेदन है 'प्लीज सिद्धांतो की बात मत किया कीजिये ' _/\_
maine to vote hi nhi diya tha fir bhi same que mera bhi unse hai jo mujhe vote k liye request krte the
ReplyDeleteमैं सहमत नहीं हूँ, मैडम की महत्वाकांक्षाएं बड़ी है उन्हें ये कदम उठाना ही था
ReplyDeleteछात्रसंघ के अध्यक्ष होने के बाद सबकुछ छोड़ देना भी कितना उचित है???