हम जरा सा लापरवाह क्या हुए आपने तो हमें सोसिअली बायकाट कर दिया....
वाकिफ था इस बात से 'कौन कितने दिन याद रखता है', लेकिन सोचा था कम से कम जब तक विभाग में हूँ तब तक तो जूनियर्स की यथासम्भव मदद करूंगा और उनकी नजर में एक अच्छा सीनियर से अतिरिक्त एक अच्छा इन्सान बनने की कोशिश करूंगा । लेकिन बात तो सच है कौन कितने दिन याद रखता है ???
पिछले कुछ दिनों से अपनी व्यक्तिगत व्यस्तताओं की वजह से विभाग नही जा पा रहा हूँ । अब जब जा नही पा रहा हूँ तो क्लासेज और असाइनमेंट भी नहीं कर पा रहा था । इस बाबत विभाग की नोटिस बोर्ड पर परम्परागत तौर से चिपकाई जा रही निकम्मों की सूची में नाम आ गया। आज उसी सिलसिले में विभाग जाना हुआ । अपने क्लासमेट और मित्र राहुल के साथ विभाग पंहुचा। विभाग पहुचते ही आदतन तेज कदमों से सीधे हम दोनों अपनी क्लास में जा पंहुचे । सोचा हमेशा की तरह दो-चार लोग अपना काम कर रहे होंगे, लेकिन अंदर का नजारा देख कर हम दोनों के होस ही उड़ गये । 'बिन बुलाये मेहमान की ' फीलिंग के साथ नजरें जमीन में गडाये हुए खचाखच भरी हुई क्लास के पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गये । अंदर के नजारे को देखकर विभाग के नाम का सारा गुमान एक झटके में चूर-चूर हो गया । मैंने वहां बैठे रहकर और जलालत झेलने से बेहतर बाहर जाना उचित समझा । कुछ बैचमेट्स ने नैतिकतावस रोका भी लेकिन ये खुद्दार कदम थे की रुके ही नही ।
दरअसल अंदर हमारे बैच के फेयरवेल के नाम पर एक पार्टी चल रही थी।कुछ दिनों पहले किसी ने बताया था की फेयरवेल होगा तो खुशी हुई थी सोचा विभाग से एक बेहतरीन अनुभव होगा । लेकिन सोचा नही था इतना बेहतरीन अनुभव होगा । मैं आपको इस फंक्शन की हकीकत सुनाऊं लेकिन उससे पहले एक रोचक वाकया सुनिए........
पिछले साल के अंत में विभाग से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के लिए हम लोगों का गोवा का टूर था । तो लड़कियों के न जाने की वजह से और लोगों की अपनी-अपनी व्यक्तिगत वजहों से जाने वाले सिर्फ दस लोग थे । मुझे भी कुछ लोगों के साथ न आने का दुःख था । सोचा था कुछ दिन कहीं बाहर साथ रहेंगे तो कुछ गिले-सिकवे दूर होंगे । खैर जो नही हो सका उसकी क्या बात करना जो हुआ उसकी बात करता हूँ । मेरी ना-नुकुर के बावजूद क्लास की आम सहमती और सर की इच्छा से मुझे उस दस की टोली की मुखिया बना दिया गया । मुझे मेरे सीनियर्स से इस तरह के टूर में होने वाली सभी तरह की अनहोनियों का पूर्वज्ञान था इसलिए मैं थोडा कतरा रहा था । इसीलिए मैंने मेरे क्लासमेट Ramendra Ojha को भी इस लीडरी में साथ रक्खा। हालाँकि ओझा जी भी इस जिम्मेदारी से भाग रहे थे लेकिन सर के दबाव में वो किसी तरह तैयार हुआ ।जिम्मेदारी लेकर अपना टूर कौन बर्बाद करना चाहता था सब मजे लेने गये थे मजे लेकर आये । बली का बकरा तो मुझे बनना था ।
यूनिवर्सिटी से मिले फंड का हिसाब मैं यहां नहीं दूंगा । कम छीछालेदर नहीं हुई है इस मुद्दे पर । खैर टूर के शुरू होने से लेकर लौटने के तीन महीने बाद तक फण्ड से रूपये गबन करने के आरोप लगते रहे ।मैं भी आदतन झल्लाया लोगों से बहस भी की और भी कुछ शर्मनाक हरकत हुई मुझसे । आज भी कुछ लोगों को लगता है टूर में मैंने फंड के पैसे से अपना व्यक्तिगत खर्च चलाया । ऊँचे लोग ऊँची सोच । टूर में जिस दरियादिली कॉमन फंड से खर्च किये थे उसका खामियाजा अभी तक भुगत रहा हूँ ।
अब टूर न जा पाने वालों का भी अपना दंस था । विभाग में एक के बाद एक आरटीआई फाईल की गयी । मुझसे लगातार हिसाब माँगा जाता रहा । मतलब जलालतों का एक ऐसा सिलसिला चला की क्या कहने ! मुझे दोषी की तरह जब जिसने चाहा कटघरे में खड़ा किया । अब मरता क्या न करता अपने नुकसान की परवाह किये बगैर मैंने यूनिवर्सिटी को पूरा हिसाब बिल सहित दे दिया ।
अब मेरा सवाल ये है की कल के फंक्शन में जो विश्वविद्यालय से फण्ड आया उसके हिसाब की भी किसी को खबर है या फिर पूरी-सब्जी, पेटीज-पेस्ट्री खाकर ही खुस हो सब ??? और प्लास्टिक के कुछ मेडल्स भी खुशियाँ दे रहे होंगे ?? खैर जो ऊँची सोच वाले बौद्धिक लोग है उनसे ये कहना चाहूँगा 'अब तो खाने को मिल गया अब क्यूँ आरटीआई फाईल होगी, है ना ???' और जो मेरी तरह की नीची सोच वाले है उनके लिए भी एक बात है 'तीन घंटे चूतियों की तरह तुम्हे बिठा कर, थोडा तेल-पानी लगाकर फेयरवेल के नाम पर जो छलावा हुआ तुम्हारे साथ उसका जरा सा भी आभास है तुम्हे ???'
और हां कुछ हजार रुपयों के लिए ड्रामा करके लोगों को उल्लू बना कर बिना किसी अड़चन के गबन करने वालों को भी बधाई !
मित्र काहे छलावे में पड़े हो छोडो और आगे बढ़ो
ReplyDeleteतुम्हे बहुत आगे जाना है
tum bhi rti daalo
ReplyDeleteहोनी थी हो गयी छोड़ो ये सब
ReplyDelete