Friday, April 8, 2016

ख्वाहिश-ए-शब्दभेदी

ये मेरा तन-मन, मेरे जोशो-जुनून
मेरा सबकुछ सुपर्द खाक-ए-वतन करना ।

मेरे अज़ीज़ों बस इतना करम करना ,
मर जाऊं तो तिरंगे में दफ़न करना ।

मिट्टी में मिल जाये मेरी मिट्टी जब ,
गुलों से गुलजार वहीं इक चमन करना ।

'शब्दभेदी' बस इतनी सी ख्वाहिस है मेरी,
जितना हो सके मुल्क में मेरे अमन करना ।

3 comments:

  1. आने वाली पीढियां 'ख्वाहिश-ए-शब्दभेदी' याद रखेंगी

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  2. सही कहा राहुल भाई आने वाली पीढियां 'ख्वाहिश-ए-शब्दभेदी' याद रखेंगी और अमल भी करेंगी

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