ये मेरा तन-मन, मेरे जोशो-जुनून
मेरा सबकुछ सुपर्द खाक-ए-वतन करना ।
मर जाऊं तो तिरंगे में दफ़न करना ।
मिट्टी में मिल जाये मेरी मिट्टी जब ,
गुलों से गुलजार वहीं इक चमन करना ।
'शब्दभेदी' बस इतनी सी ख्वाहिस है मेरी,
जितना हो सके मुल्क में मेरे अमन करना ।
आने वाली पीढियां 'ख्वाहिश-ए-शब्दभेदी' याद रखेंगी
ReplyDeletewaah mere bhai waah
ReplyDeleteसही कहा राहुल भाई आने वाली पीढियां 'ख्वाहिश-ए-शब्दभेदी' याद रखेंगी और अमल भी करेंगी
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