मैं और तुम्हारी यादें मिलकर
अक्सर करते हैं 'मन-मंथन'
मेरे 'अंतर्मन के सागर' में
और इसमें निकलतें हैं
तमाम खयाली रत्न!
.
इस मंथन में से निकले
हलाहल और अमिय भी
'अनवरतता का अमिय' पीकर
अमर हो गयीं तुम्हारी यादें
और मेरे हिस्से आया 'दर्द का हलाहल'!
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- शब्दभेदी
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*हलाहल- विष
*अमिय- अमृत
Monday, February 27, 2017
मन-मंथन
Monday, February 20, 2017
डूबना
बेशक डूब जाना भी
खूबसूरत होता है
उगने से कहीं जियादा,
बशर्ते फिर से उगने की
एक नई उम्मीद लेकर
डूबना हो!
•
फिर से उगकर
अपने ओज से
पूरी धरा को
प्रकाशित कर देने के
एक प्रण के साथ
डूबना हो!
•
व्यर्थ नहीं था
बिछुड़न की साँझ में
मेरा डूब जाना, उसी पल
तय था मेरा उगना जैसे
कल उगने के लिए सूरज का
डूबना हो!
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: शब्दभेदी
Sunday, February 19, 2017
इलेक्शन (ठेठ कविता)
कपार पर जब भी इलेक्शन आता है,
नून-भात मांगो तो पोलाव आता है।
•
राजधानी के हेठे जो दिखे न कभ्भी,
नेता जी लोग अब गांव-गांव जाता है।
•
मोर, मोरगा अउर काकभुसुंडी हर कोई,
अपना राग गाता है, अपना ही गीत सुनाता है।
•
जिसको देखकर कल तक खून जरता था,
उसी को आज 'भइया बिसेसर जी' बुलाता है।
•
चिक्कन का कुरता अउर कोबरा का सेंट,
अभी तो गले मिलता है, खूब हाथ मिलाता है।
•
मिल गयी कुर्सी तो फिर दिखाई न देगा कभी,
खाली गाड़ी से आते-जाते हाथ हिलाता है।
•
कमल, पंजा, सईकिल, हाथी किसकी कहूँ,
शब्दभेदी सभी तो हमको एक ही बुझाता है।
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Monday, February 13, 2017
रचनाकार से प्रेम
यदि एक रचनाकार को
हो जाता है आपसे प्रेम
तो वो आपको कभी
मरने नहीं देगा।
अमर, सिर्फ आप को ही नहीं
आपसे जुडी हर बात को कर देगा
उन्हें भी जो मर चुकी होंगी
आपके ही जेहन में शायद!
सजोंकर अपनी स्मृतियों में
रखता है आजीवन उन्हें
और विदा लेने से पहले
देता है इन्हें मूर्त रूप।
किसी भी विधा का रचनाकार
संसार छोड़ता है,
अपने प्रेम को
अमरत्व की घुट्टी पिलाकर!
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: शब्दभेदी
ला-ज़वाल मोहब्बत
अजीब-ओ-गरीब दुनियां है ये चाहतों वाली,
इसमें होना भी बवाल है न होना भी बवाल है।
कि सारे दर्द सहते हैं उफ्फ तक नहीं करते,
इश्क में डूब के बैठों का रवइया भी कमाल है।
ये कैसा सिलसिला है मिलन और जुदाई का,
वो हो या नहीं हो फिर भी उसका ही खयाल है।
किसी का हो गया वो, दर्द यही क्या कम था,
मैं किसी का हो न पाउँगा इसका भी मलाल है।
सच कहता हूं उसके साथ भी उसके बाद भी,
इस रंज-ओ-ग़म की दुनिया में जीना भी मुहाल है।
क्यों अफ़सोस लेकर बैठे नामुकम्मल ख्वाब का,
शब्दभेदी खुस हो जाओ कि ये मोहब्बत ला-ज़वाल है!
Sunday, February 12, 2017
आलिंगन पाश
तुम्हारा पहला आलिंगन
याद है मुझे..!
जिस पाश में आज तक
बंधे हुए हैं मेरे रात-दिन।
और बंधी हुई हैं..
मेरी सारी कविताएं।
•
कोशिश कई दफे की
इससे निकल कर
आजाद साँस लेने कि
लेकिन दम घुटने लगता है
इससे बाहर आते ही,
मेरा भी और कविताओं का भी।
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शब्दभेदी
Saturday, February 11, 2017
खाकसार वादा
यूँ तो कई हमनवा कई अजीज हैं मेरे, दानिस्ता
हम ही किसी पे यकीं जियादा नहीं करते।
खुदबखुद ही निकल आये कोई तो दुरुस्त हो
किसी को साथ चलने पर आमादा नही करते।
किसी अंजुमन में जाना होता नही फिर भी,
बनिस्बत उन दिनों के रुख़-ए-सादा नहीं करते
इक तूफान इधर से गुजरा, सब ले गया हो जैसे
किसी से निबाह करने का अब वादा नहीं करते।
- शब्दभेदी
Sunday, February 5, 2017
प्रयाग के नगर-देवता
Thursday, February 2, 2017
परिंदे का शजर
ड्योढ़ी पे थी अम्मा, बरमदे में थे बाऊ जी
कोई ऐसे कभी अपना घर नहीं छोड़ता।
मजबूर थे वे भी न रोक पाये नहीं तो, अपने
दिल के टुकड़े को कोई दरबदर नही छोड़ता।
घर की जरूरतें ले आई मुझे भी शहर वरना,
शौक से परिंदा भी कभी शजर नहीं छोड़ता।
जिम्मेदारियां साथ हैं बचपना छोड़ आया हूँ,
तुम्हीं बतलाओ इसे मैं क्यूंकर नहीं छोड़ता।
'शब्दभेदी' मुद्दतों बाद आज मैं खुल के रोया हूँ,
दर्द-ए-दिल कुछ भी मुख़्तसर नहीं छोड़ता।
- शब्दभेदी
मां सिखला दो मुझे गूँथना
सुनो माँ
जैसे तुमने मुझे सिखलाया
दुनियां के तमाम
रीती-रिवाज, वैसे ही
सिखला दो मुझे गूंथना,
ताकि एक दिन मैं भी
इन्ही रीती रिवाजों से
गूँथ सकूँ अपने सपने!
अरे हाँ
वही सपने जो अक्सर
तुम्हारे घर में न होने पर
मैं पहनकर नापती हूँ
तुम्हारे चप्पल और सूट
और सोचती हूं तुम्हारे
कहे के मुताबिक मैं
कभी बड़ी हो जाऊंगी!
और वो सपना भी
जो मेरे पसन्दीदा हैं
जब तुम सँवरती हो
तब आलता, बिंदिया
और काजल लगाते हुए
तुमको देखना, सीखना
और सपने सजाना
जीवन में प्रेम के रंग भरने के!
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शब्दभेदी