Monday, February 13, 2017

ला-ज़वाल मोहब्बत

अजीब-ओ-गरीब दुनियां है ये चाहतों वाली,
इसमें होना भी बवाल है न होना भी बवाल है।

कि सारे दर्द सहते हैं उफ्फ तक नहीं करते,
इश्क में डूब के बैठों का रवइया भी कमाल है।

ये कैसा सिलसिला है मिलन और जुदाई का,
वो हो या नहीं हो फिर भी उसका ही खयाल है।

किसी का हो गया वो, दर्द यही क्या कम था,
मैं किसी का हो न पाउँगा इसका भी मलाल है।

सच कहता हूं उसके साथ भी उसके बाद भी,
इस रंज-ओ-ग़म की दुनिया में जीना भी मुहाल है।

क्यों अफ़सोस लेकर बैठे नामुकम्मल ख्वाब का,
शब्दभेदी खुस हो जाओ कि ये मोहब्बत ला-ज़वाल है!

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