Thursday, February 2, 2017

मां सिखला दो मुझे गूँथना

सुनो माँ
जैसे तुमने मुझे सिखलाया
दुनियां के तमाम
रीती-रिवाज, वैसे ही
सिखला दो मुझे गूंथना,
ताकि एक दिन मैं भी
इन्ही रीती रिवाजों से
गूँथ सकूँ अपने सपने!

अरे हाँ
वही सपने जो अक्सर
तुम्हारे घर में न होने पर
मैं पहनकर नापती हूँ
तुम्हारे चप्पल और सूट
और सोचती हूं तुम्हारे
कहे के मुताबिक मैं
कभी बड़ी हो जाऊंगी!

और वो सपना भी
जो मेरे पसन्दीदा हैं
जब तुम सँवरती हो
तब आलता, बिंदिया
और काजल लगाते हुए
तुमको देखना, सीखना
और सपने सजाना
जीवन में प्रेम के रंग भरने के!
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शब्दभेदी

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