'कैसा लगा मिलके?'
'अच्छा लगा.. आपकी टी-शर्ट प्यारी थी'
'अरे सच्ची बताओ ना कैसा लगा??'
'बताया तो टी-शर्ट खूब जच रही थी आप पर'
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ऋषि चेतना के इस बेवकूफी भरे जवाब पर खीजते हुए बोला
'टी-शर्ट देखने आई थी या मुझे, एक घंटे की मुलाकात में तुमको टी-शर्ट ही समझ में आयी?'
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जवाब के अंदाज ने नकचढ़े ऋषि का गुस्सा एक पल में काफूर कर दिया 'हां तो.. एक घंटे में टी-शर्ट ही समझ में आती है इंसान को तो समझने में वक्त लगता है'
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'हां फिलासफी मत दो हमको... फोन ही टपर-टपर बोलती हो सामने तो आवाज ही नहीं निकलती' ऋषि बोला।
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अब गुस्से की बारी सामने से थी...
'और आपको क्या जरूरत थी आइसक्रीम के पैसे देने की.. मेरे फ्रेंड्स को मैं लेकर आई थी, मैं देती ना..!'
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ऋषि को ये बात भी थोड़ी अजीब लगी, उसको लगता मैं लड़का हूँ पैसे तो मुझे ही देने चाहिए, लेकिन उसने महसूस किया कि बीते महीनों में चेतना का इतना हक तो बन ही गया है।
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अब गुस्सा दिखाने का हिसाब भी बराबर हो चुका था
दोनों तरफ से चुप्पी..
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चेतना ख़ामोशी तोड़ते हुए बोली
'बसन्त पंचमी है ना.. तो शाम को हमारे मोहल्ले में सरस्वती पूजा का प्रोग्राम है देखने आएंगे ना!'
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'प्रोग्राम या तुम्हें?' ऋषि नाराजगी दिखाते हुए
'हां मुझे, मैं आज साड़ी पहनूँगी' चेतना शर्माते हुए बोली'
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'हां आऊंगा' ऋषि अपनी उत्सुकता छिपाते हुए बोला।
'साड़ी देखने या मुझे' चुटकी लेते हुए चेतना बोली
'नहीं साड़ी में तुम्हें' और दोनों जोर से हँसते हैं!
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दरअसल जबसे ऋषि ने चेतना को अपनी सरीक-ए-हयात के तौर पे सोचा था तबसे उसकी दिली इच्छा थी की वो चेतना को साड़ी में देखे। इसके लिए वो कई बार चेतना से कह भी चुका था।
यूपी बिहार के लड़के अपने ट्रू-लव को अपनी पत्नी के रूप में बाद में मां की बहू के तौर पर पहले देखते हैं!
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'चलो अभी फोन रखता हूँ'
फोन कटने के बाद दोनों तरफ चेहरे पर मुस्कान...
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ऋषि के रेडियो पर गाना बज रहा था
'जब दीप जले आना...
जब शाम ढले आना..
सन्देस मिलन का भूल न जाना...
मेरा प्यार ना बिसराना..
जब दीप जले आना ...!'
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शब्दभेदी
Tuesday, January 31, 2017
बसन्त पंचमी (लप्रेक)
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