बाहर-बाहर खूब सजा हूँ,
अंदर कितना खाली हूँ !
नहीं चाहिये किसी से कुछ भी,
आप ही अपना सवाली हूँ !
अमन-अमन का शोर मचाता,
सबसे बड़ा बवाली हूँ !
जितना भी बर्बाद हुआ मैं ,
उतना ही अब आली हूँ !
'शब्दभेदी' दर्द है, एहसास औ बेफिक्री भी है ,
फिर भी इन्ही नगमात सा कितना ख्याली हूँ !
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