कैसे नाराजगी में एक बार
आँख दिखाने भर से ही
तुम समझ जाती थी कि
तुम्हारा यूँ गुनगुनाना
खलल दे रहा है मुझे
तुम्हारा हुस्न लिखने में !
आँख दिखाने भर से ही
तुम समझ जाती थी कि
तुम्हारा यूँ गुनगुनाना
खलल दे रहा है मुझे
तुम्हारा हुस्न लिखने में !
इन बेहिज , बदतमीज ,
बेशरम , बेहया ,
बेअदब यादों को थोड़ा
सलीका सिखाओ , ये बेशक
तुम्हारी हैं लेकिन तुम जैसी
बिल्कुल भी नहीं हैं !
बेशरम , बेहया ,
बेअदब यादों को थोड़ा
सलीका सिखाओ , ये बेशक
तुम्हारी हैं लेकिन तुम जैसी
बिल्कुल भी नहीं हैं !
- शब्दभेदी
No comments:
Post a Comment