अंधेरों में कब तक घुट-घुट मरेंगे,
चलो उम्मीदों का चराग जलाते हैं!
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जो खो दिया हमने सियासत की आंधी में,
आने वाली नश्ल को उससे बचाते हैं!
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अमन के बदले नफरतों के जो सौदे हुए,
उनका दे के आते हैं अपना ले के आते हैं!
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शब्दभेदी मोहब्बत का इत्र हवा में घोल दो,
आओ हम भी जश्न-ए-जम्हूरियत मनाते हैं!
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*(जश्न-ए-जम्हूरियत : गणतंत्र का उत्सव)
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हम और आप.. जैसे कदम-कदम पर देश और देशभक्ति की परिभाषाए गढ़ते हैं वैसे ही सुनिश्चित करें कि जन-जन का तंत्र और उसके उत्सव में देश का आखिरी जन भी पुरे हर्ष के साथ शामिल हो !
बाकी आपको भी हैप्पी रिपब्लिक डे.. आप खुद समझदार हैं..!
जय हो !
हम और आप.. जैसे कदम-कदम पर देश और देशभक्ति की परिभाषाए गढ़ते हैं वैसे ही सुनिश्चित करें कि जन-जन का तंत्र और उसके उत्सव में देश का आखिरी जन भी पुरे हर्ष के साथ शामिल हो !
बाकी आपको भी हैप्पी रिपब्लिक डे.. आप खुद समझदार हैं..!
जय हो !
Monday, January 30, 2017
जश्न-ए-जम्हूरियत
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