'भाई लाइफ में बहुत कुछ होता है न होने के लिए..!'
सबकुछ ठीक है वाली बनावटी शकल लिए बैठे ऋषि को झकझोरते हुए अनन्त कहता है।बुझी हुई आँखों को मीचते हुए ऋषि उसकी बात पर गौर करता है तो अनन्त दुहराता है...
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'ऋषि मेरे भाई, यूपीएससी के इम्तेहान को ही ले लो.. ऑल इज कम्पल्सरी के इस प्रश्नपत्र में बहुत से प्रश्न होते हैं जो नहीं करने के लिए बनाये गए होते हैं और समझदार कॉम्पटीटर बिना पछतावे के इसे छोड़कर आगे बढ़ता है। ठीक ऐसे ही हमारे जीवन में भी बहुत कुछ होता है न होने के लिए। ऐसी चीजों को भूल कर आगे बढ़ने में ही समझदारी होती है।'
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Anant के इस विचित्र दर्शन पर कमरे में बैठे बाकी लोग जोर-जोर से ठहाके लगाने लगते हैं!
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ऋषि को अब तक कई लोगों ने कई-कई दफे समझाया था 'जो होता है अच्छे के लिए होता है शायद तुम्हारे लिए कुछ बेहतर होना तय हो!'
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उसके दिमाग में हमेशा यही उहापोह का विषय था.. उठते-बैठते, सोते-जागते हर वक्त ये मशवरे मगज में मथते रहते.. खुद से एक ही सवाल हमेशा करता 'चेतना से बेहतर क्यों तय है, चेतना ही क्यों नहीं?
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जाने का वक्त हो गया, ऋषि फिर मिलने के वादे के साथ सभी से अलविदा लेता है। अनन्त के घर से निकलकर, सड़क पर आकर जैसे ही ऋषि अकेला पड़ता है फिर अपनी ही दुनियां में खो जाता है.. वही उहापोह फिर से.. विषय भी वही.. लेकिन अब उसके मन में उठने वाला सवाल बदल गया है..!
अब सवाल था..
'क्या चेतना का मेरे जीवन में होना भी न होने के लिए था?'
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- शब्दभेदी
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नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। भौतिक जीवन में किसी घटना अथवा व्यक्ति नाम का मिलना महज एक इत्तेफाक है
Monday, January 30, 2017
उहापोह
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