Sunday, February 5, 2017

प्रयाग के नगर-देवता










जरूर पढ़ें! मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कहूंगा कि अगर आप साहित्य या समाज से प्रेम करते हैं तो ये लाइन्स जरूर पढ़ें। ये बात और है कि नीचे लिखी लाइनों में अद्वितीय साहित्यिक सुन्दरता है। लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि यदि आपको इलाहाबाद शहर से तनिक भी लगाव है तो प्रेम कहानीयों के कालजयी लेखक धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों के देवता' कि ये लाइनें जरूर पढ़ें और ना सिर्फ पढ़ें बल्कि महसूस भी करें। मेरा दावा है कि आपको अप्रतिम सुखानुभूति की प्राप्ति होगी !
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धर्मवीर भारती जी उपन्यास की पृष्ठिभूमि के तौर पर अपने अनूठे अंदाज में इलाहाबाद शहर का परिचय देते हुए कहते हैं

'अगर पुराने जमाने के नगर-देवता की और ग्राम-देवता की कल्पनाएँ आज भी मान्य होतीं तो मैं कहता की इलाहाबाद का नगर-देवता जरूर कोई रोमांटिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, ज़िन्दगी और रहन-सहन में कोई बधें-बधाये नियम नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वछंद खुलाव, एक बिखरी हुई सी अनियमितता।

बनारस की गलियों से भी पतली गलियां और लखनऊ की सड़कों से चौड़ी सड़कें। यार्कशायर और ब्राइटन के उपनगरों का मुकाबला करने वाले सिविल लाइन्स और दलदल की गन्दगी को मात देने वाले मुहल्ले। मौसम में भी कहीं कोई सम नहीं, कोई सन्तुलन नहीं। सुबहें मलयजी, दोपहरें अंगारी, तो शाम रेशमी! धरती ऐसी कि सहारा के रेगिस्तान की तरह बालू भी मिले, मालवा की तरह हरे-भरे खेत भी मिले और ऊसर और परती की भी कमी नहीं। सचमुच लगता है की प्रयाग का नगर-देवता स्वर्ग से निर्वासित कोई मनमौजी कलाकार हैे जिसके सृजन में हर रंग के डोरे हैं।

और चाहे जो हो, इधर कार्तिक तथा उधर बसंत के बाद और होली के बीच के मौसम से इलाहाबाद का वातावरण नैस्टर्शियम और पैंजी के फूलों से भी जियादा खूबसूरत और आम के बौरों की खुशबू से भी जियादा महकदार होता है। सिविल लाइन्स हो या अल्फ्रेड पार्क, गंगातट हो या खुसरो बाग़, लगता है कि हवा एक नटखट दोशीजा की तरह कलियों के आँचल और लहरों के मजाज से छेडख़ानी करती चलती है।

और अगर आप सर्दियों से बहुत नहीं डरते तो आप जरा एक ओवरकोट डालकर सुबह-सुबह घूमने निकल जाएँ तो इन खुली हई जगहों की फिजाँ इठलाकर आपको अपने जादू में बाँध लेगी खासतौर से पौ फटने के पहले तो आपको एक बिलकुल नई अनुभूति होगी। वसंत के नये-नये मौसमी फूलों के रंग से मुकाबला करने वाली हल्की सुनहली बाल-सूर्य की अंगुलियां सुबह की राजकुमारी के गुलाबी वक्ष पर बिखरे हुए भौराले गेसुओं को धीरे-धीरे हटाती जाती है और क्षितिज पर सुनहली तरुणाई बिखर पड़ती है।'

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